जान सिर्फ कश्मीर के लिए कश्मीरियों के लिए नहीं

kashmir aapda-गौरव अवस्थी– कश्मीर पर बड़ा हो-हल्ला सुनते  रहे हैं। इसी कश्मीर के लिए आतंकवादी कभी हमला करते हैं। कुछ काश्मीरी -कुछ खास वर्ग समुदाय के लोग कश्मीर में जनमत संग्रह का राग अलापते हैं। एक वर्ग विशेष इसका विरोध करता है। धरती के इस जन्नत के चाय के प्याले में तूफान भारत -पाकिस्तान दोनों देशों में उठाये जाते रहे हैं। उठते रहे हैं। कश्मीर के कत्ले-आम किसी से छिपे नहीं है। भारतीय सेना लगातार निशाना बनाई जाती रही है। निशाना वह भी बनते रहे हैं जो कश्मीर में रहते हुए भारत की वकालत करते हैं और वह भी जो दुसरे प्रदेशों में रहकर कश्मीर की आजादी का समर्थन करते रहे हैं। कश्मीर की आड़ में ना जाने कितने कागद कारे हो गए। लिखते-लिखते शब्द काम पद गए। ना जाने कितने कवियों ने कश्मीर के नाम पर रॉयल्टी बटोरीं और तालियां भी। ना जाने कितनो के पेट भरे और ना जाने कितने परिवरों को इसी कश्मीर ने रोटी दी। किसी की राजनीती की दुकान कश्मीर ने चलाई और किसी की साहित्य की।

  अब जब कश्मीर पर नेचुरल आपदा पड़ी तो कोई नहीं दिख रहा। ना वह आतंकवादी, ना आतंकवादी संगठन, ना कश्मीर के पाकिस्तान में विलय पर जोर देने वाले और ना कफ़न बांधकर कश्मीर को भारत से अलग ना होने देने वाले। ना कश्मीर के लिए जान छिड़कने वाले और ना जनमत संग्रह की मांग करने वाले। सब जानते हैं की ऐसे समय में कश्मीर के लिए अलग-अलग तरह के राग अलापनेवालों की ना कुछ कर सकने की सामर्थ्य है और ना दिली ख्वाहिश। अब कोई आये और कहे की जनमत संग्रह कराओ। अब कोई आये और कश्मीरियों से कहे कि चलो पाकिस्तान परास्त हो जाया जाये। अब कोई कहे कि जान दे देंगे। कश्मीर के लिए जान लेने उअर देने वालों की कमी नहीं है।  ना इस तरफ और ना उस तरफ। कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने वाले आतंकवादी कहाँ है जो अपनी प्यारी जन्नत के जवानो (लोगों ) को आगे आकर बचाये। ना आतंकवादियों के रूप में आम आदमी की शक्ल में ही आगे आये। कहाँ हैं वह कश्मीर के लिए जान छिड़कने वाले। अरे अगर दो शब्द भी बोल देते तो तसल्ली होती। लेकिन वह भी नहीं।
   कश्मीर पाने और रोकने के लिए तो दोनों तरफ हैं लेकिन कश्मीरियों के लिए शायद कोई नहीं। अगर कोई है तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना। यह मै नहीं कह रहा। लगभग हर वह हिंदुस्तानी मान रहा है जिसे कश्मीर की  जन्नत से नहीं आपदा में घिरे कश्मीरियों से प्रेम है। मानव जाती से प्रेम है। इस आपदा से एक बात तो कश्मीरियों के मन में जरूर घर करेगी कि बहरतिया सेना जान लेना ( उन्ही की जो बेवजह दूसरों की जान लेते हैं ) भी जानती है और बचाना भी।  भविष्य में यह कश्मीरियों को तय करना होगा कि वह जान बचने वालों  रहे या कत्लेआम करने वालों के।
गौरव अवस्थी
गौरव अवस्थी

आपदा आई है। सच्चे हिंदुस्तानी होने के नाते हमें काश्मीर में रहने वाले कश्मीरियों से हमदर्दी है। कोई कहेगा कि ऐसे में जहाँ कोई जा नहीं सकता वहां कैसे कोई पंहुचकर मदद कर सकता है। मै भी मानता हूँ कि वहां पंहुचना कठिन है। लेकिन सांत्वना के दो शब्द भी नहीं निकल रहे।  ना जा पाएं हम कश्मीर कोई बात नहीं लेकिन हम अपने इलाके-संघठन में कश्मीरियों के लिए कुछ मदद जुटाने के काम में तो जुट सकते ही हैं। कितने देश हमसे हमदर्दी दिखा रहे हैं। बस वाही चुप हैं जो कश्मीर के लिए खून करते तो हैं पर खून देते नहीं।

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