चाचा मोदी का ”गुरुमंत्र“ और शिक्षक

s n singh
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देश भर में भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 126वें जन्म दिन को नया नाम ”गुरु पर्व“ देकर नये कलेवर में 5 सितम्बर, 2014 को मनाया गया। जिसे ”शिक्षक दिवस“ के रूप में मनाया जाता रहा है। 1962 से प्रतिवर्ष जारी इस कार्यक्रम में भारत के किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार सम्पूर्ण देश के छात्रों और शिक्षकों को टेलिविजन के द्वारा सम्बोधित किया तथा उनके प्रश्नों के उत्तर भी दिये। राजनीतिक विचार भिन्न्ाता के कारण कांग्रेस, तृणमूल और ए.आई.डी.एम.के. शासित राज्यों के लाखों छात्रों और शिक्षकों को प्रधानमंत्री के इस प्रेरक उद्बोधन से वंचित रखा गया। कई विवाद उठाये गये। किसी ने बच्चों और शिक्षकों को अपराह्न में भाषण सुनने के लिए ”बाध्य“ किए जाने का विरोध किया तो किसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित ”बौद्धिकता“ का विरोध किया। किसी को भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व, हिन्दी राष्ट्रीयता का प्रचार सरकारी तंत्र से करवाने या ”मोदीवाद“ की मानवतावादी छवि को गढ़ने का प्रयास नज़र आया। प्रधानमंत्री मोदी के हिन्दी में दिए गए भाषण को अन्य 13 भाषाओं में भी प्रसारित किया गया। विद्यालयों में शिक्षण कार्य के बाद अपराह्न में भाषण का समय निर्धारित होने के बाद भी छात्रों और शिक्षकों में उत्साह नज़र आया। इस वर्ष के प्रारम्भ से ही देशवासियों में लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान और उसके बाद ”मोदी“ के भाषणों को सुनने की ललक मौजूद है उसे ”गुरु पर्व“ के दिन भी देखा गया। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा छात्रों के साथ किए गए संवादों में राजनीति, धर्म, सरकार के कार्य और महानता का बखान नहीं किया गया। सरल भाषा में छात्रों और शिक्षकों को सकारात्मक सोच का संदेश देते हुए समाज के अन्य प्रबुद्ध लोगों को भी शैक्षणिक, सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में बिजली, पानी, पर्यावरण की रक्षा करते हुए भागीदारी निभाने को आग्रह किया गया। प्रबुद्ध वर्गों यदि सप्ताह में सरकारी स्कूल में एक भी कक्षा लेंगे तो छात्रों का मनोबल बढ़ेगा और शिक्षकों पर अंकुश होगा। यद्यपि उन्होंने शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं को उजागर अवश्य किया तथापि समाधान का कोई मार्ग नहीं बताया और सम्भावित सरकारी पहल का उल्लेख भी नहीं किया।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जो बच्चों के चाचा नेहरू थे उनकी तर्ज पर ही प्रधानमंत्री ने मोदी चाचा बनते जा रहे है। उन्होंने ”हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आये“ कहावत को चरितार्थ करते हुए छात्रों पर संवाद के माध्यम से प्रेरणा, गम्भीरता और हास्य विनोद के द्वारा छात्रों की समस्या उजागर किया है। तो उनके पास छात्रों को सुविधायें देने के लिए देश का भरपूर खजाना है। देश के ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों की सही स्थिति की जानकारी भी उन्हें 5 सितम्बर, 2014 को ही दी गयी होगी कि कितने स्कूलों में टेलिविजन, लेपटॉप, बिजली और शौचालय है या नहीं है। केवल कोरे ”शब्द-दान“ से सरकारी विद्यालयों में इनका अभाव दूर नहीं होगा। देश में करीब 64 प्रतिशत प्राथमिक स्कूल में बिजली नहीं है। यही हाल रसोई-घर, शौचालय, कक्षा-कक्ष एवं खेल के मैदान का भी है। अतः जबतक बुनियादी सुविधाएँ नही दी जायेगी तब तक शिक्षा-व्यवस्था कैसे सुधरेगी? इन सुविधाओं के लिए ”धनदान“ अर्थात् बजट उपलब्ध करवाने की महत्ती आवश्यकता है। जिससे कि अगले वर्ष ”गुरुपर्व“ को अधिक उत्साह से पूरे देश में मनाया जा सके। साथ ही इसके आयोजन के लिए स्कूल का खेल और पुस्तकालय का बजट भी खर्च नहीं किया जाये और स्कूल के शिक्षकगणों को छात्रों और उनके अभिभावकों से इस आयोजन के लिए चन्दा मांगने की विवशता भी न रहे। मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को भी राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पादन का 6 प्रतिशत धन शिक्षा पर खर्च करने के लिए मिले, तब ही ”गुरु पर्व“ को सार्थक बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छात्रों को अच्छे जीवन और राष्ट्रसेवा का मंत्र देते हुए कहा कि वे पाठ्य-पुस्तकों के अलावा दूसरी किताबों से भी ज्ञान अर्जित करें और खूब खेलकूद और मस्ती भी करें, जिससे उनके शरीर से पसीना निकलें। उन्होंने कहा कि पढ़ाई, खेलकूद, स्वच्छता, अनुशासन और चरित्र निर्माण पर ध्यान देकर सभी छात्र राष्ट्र के विकास में अपना योगदान कर सकते हैं। ”मोदी“ ने आगे शिक्षक छात्र-सम्बंध, समाज का विद्यालय में योगदान, अच्छे शिक्षकों और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे शिक्षकों की माँग की बात भी कही। भारत से अच्छे शिक्षक विदेशों में जाएं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि अच्छे शिक्षक बनेगे कहाँ से? देश के अधिकतर ”शिक्षक“ प्रशिक्षण महाविद्यालय जो बी.एड. एवं एम.एड. की डिग्री प्रदान करवाते है, कागजों पर चलते है। प्रशिक्षणार्थियों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं होते है और शिक्षण के लिए छात्र नहीं। अभ्यास के लैब और लाइब्रेरी भी नहीं है। सरकारी संस्थानों में चाहे स्कूल हो, कॉलेज हो या विश्वविद्यालय, योग्यताधारी व्यक्ति नियुक्ति से वंचित रहते है और अयोग्य अभ्यर्थी सिफारिश और पैसे के बल पर नियुक्त हो जाते है। ऐसे शिक्षकों से छात्रों का क्या भला होगा? प्रायः सभी राज्यों में शिक्षकों के पदस्थापन और स्थानान्तरण का काला कारोबार जारी है। प्रधानमंत्री जी चाहे तो इसे रूकवा ही सकते हैं। जिसमें मंत्री-विधायक की अनुशंसा धन के लेन-देन पर ही निर्भर करती है। शिक्षा में भ्रष्टाचार रूके शिक्षक शिक्षण कार्य हेतु पाबन्द हो और सरकारी स्कूलों में भी सभी सुविधाएँ उपलब्ध हो। इसमें ही ”मोदी मंत्र“ की सार्थकता है।
देश में 40 प्रतिशत स्कूल प्राइवेट है उनमें 4 हजार रुपये या उससे कम मासिक वेतन पर एम.ए., बी.एड. शिक्षक पढ़ाते है। सरकारी स्कूलों में भी अस्थाई शिक्षक को 4 से 5 हजार मासिक वेतन दिया जाता है। देश में करीब 5 लाख अस्थाई शिक्षक वर्षों से पढ़ा रहे हैं। इसके विपरीत जिन सरकारी शिक्षकों की मोटी रकम वेतन के रूप में मिलती है वे पढ़ाते नहीं है और जो अस्थायी शिक्षक पढ़ाते हैं उन्हें मजदूरों से भी कम वेतन दिया जा रहा है। अतः शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए शिक्षकों को स्थिति में भी सुधार अपेक्षित है तब ही छात्र योग्य बन सकेंगे तथा आगे जाकर वे कुशल शिक्षक बनेंगे। कुशल शिक्षक ही छात्रों की प्रतिभा को पहचान कर उसे निखारने का काम करते हैं तब ही समाज और देश का विकास हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने मात्रात्मक के स्थान पर गुणात्मक शिक्षा की व्यवस्था पर अधिक बल दिया। देश में 25000 सरकारी और प्राइवेट कॉलेज है इसके अलावा 187 निजी विश्वविद्यालय इस गुणात्मक शिक्षा के उद्देश्य को बरबाद कर रहे है। उनके द्वारा मोटी रकम के बदले आज की युवा पीढ़ी को फर्जी डिग्रीयाँ बाँटी जा रही है। इससे शिक्षा की गुणात्मकता में गिरावट आई है, जिसके कारण डिग्रीधारी शिक्षकों की फौज खड़ी हो गई है। छात्रों की ैापससे (हुनर) का भी कहीं न कहीं ह्रास हुआ है। प्रधानमंत्री जी ने अपने ”गुरुमंत्र“ में कहा कि डिग्री के साथ स्किल का होना भी जरूरी है लेकिन इस स्किल को बढ़ावा कौन देगा? क्या मानव संसाधन मंत्रालय का यह दायित्व नहीं बनता है कि वह विभिन्न्ा पाठ्यक्रमों के लिए अनुमति प्रदान करने वाली संस्था (न्ळब् अथवा ।प्ब्ज्म्) जो शिक्षकों की योग्यता और पाठ्यक्रम (ैलससंइने) का निर्धारण करती है इसे सही तरह से नियंत्रित करें। अच्छे शिक्षण और प्रशिक्षण से ही एक अच्छा और कुशल शिक्षक बनता है।
यदि वर्तमान प्रधानमंत्री निजी शिक्षण संस्थानों पर नकेल कसते हुए सरकारी संस्थानों में कार्यप्रणाली को बेहतर करते हुए सुविधाएँ बढ़ाते है तो ”शिक्षा“ में सुधार अवश्य हो सकता है। आज के तकनीकी युग में कदम-से-कदम मिलाकर चले तो सार्थक होगा। जहाँ केवल डिग्री बाँटने का काम ही न हो अपितु उसमें डिग्री के लिए आवश्यक कौशल का विकास भी सम्भव हो, अतः इसकी पहल कहीं-कहीं मानव संसाधन मंत्रालय को करनी होगी तब ही शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है।
प्रो. श्यामानन्द सिंह
विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग,
एवं डीन सामाजिक विज्ञान संकाय,
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर।
मो.ः09352002053, email:sn_singh4@yahoo.com

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