”तुम बिन”

-त्रिवेन्द्र कुमार पाठक-

त्रिवेन्द्र कुमार पाठक
त्रिवेन्द्र कुमार पाठक

सुबह अधूरी है तुम बिन,
साँझ अकेली है तुम बिन।
जीवन में कुछ विशेष नहीं,
लक्ष्य शेष नहीं तुम बिन।
प्रणय भाव है मन में,
आ जाओ तुम जीवन में,
अकेला जीवन पथ पर,
चल नहीं सकता,
रिक्तता से जीवन,
कट नहीं सकता।
तुम स्वयं सोचकर विचार करो,
हम कितने अधूरे है तुम बिन,
हम कितने अकेले हैं तुम बिन।

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