चौधरी मुनव्वर सलीम के परिवार में ख़ुशी की लहर

परिवार के सदस्य कैलाश सत्यार्थी को मिला नोबल पुरूस्कार
आज भी मुनव्वर सलीम साहब के हाथों में मौजूद यह बैत कौलाश सत्यार्थी जी और मुनव्वर सलीम साहब के बीच मौजूद जज़्बाती रिश्ते को चीख-चीख कर ब्यान कर रहा है !
kailash satyarthi-आमिर अंसारी- जब कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरूस्कार का ऐलान हुआ तब यह न सिर्फ़ सत्यार्थी और चौधरी परिवार के लिए ईद या दीपावली का दिन था बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप का सीना विश्व भर के सामने गर्व से फूल गया ! जब नोबेल कमेटी यह जुमले कहे कि “पहली बार एक हिन्दू और एक मुस्लिम को शांती का नोबल संयुक्त रूप से दिया जा रहा है ” तब विश्व समुदाय को यह सन्देश भी चला गया कि जब हिन्दू-मुस्लिम मिलकर कोई कार्य करते हैं तो उनकी ताक़त दस गुना हो जाती है और संसार यह स्वीकार करता है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता न सिर्फ़ हिन्दुस्तान बल्कि विश्व में शांती का सन्देश देती है !
नोबल कमेटी के इस सन्देश को ८० के दशक में ही कैलाश जी जान चुके थे ,चूंकि कैलाश सत्यार्थी के सबसे करीबी लोगों में परिवार के सदस्य की हैसियत अगर किसी को हासिल है तो वोह भी एक ऐसा मुसलमान है जो बेतवा के बेटे की शक्ल में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में न सिर्फ़ मप्र बल्कि पूरे हिन्दोस्तान में चौधरी मुनव्वर सलीम के नाम से जाना पहचाना जाता है !
सपा सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम और नोबल पुरूस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के मध्य वह अटूट जज़्बाती रिश्ता है , जो नफ़रत,साम्प्रदायिकता और धार्मिक द्वेश की आँधियाँ चलाने वालों के गाल पर एक तमांचा है ! कैलाश सत्यार्थी को मुनव्वर सलीम ने अपना राजनैतिक गुरू जेपी आंदोलन में ही मानकर उनके साथ काँधे से कांधा मिलाकर संघर्ष करना शुरू कर दिया था !चाहे विदिशा जामा मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ रईस उद्दीन की गिरफ़्तारी के पश्चात कैलाश सत्यार्थी और मुनव्वर सलीम का रात्री १२ बजे से धरने पर बैठना हो ,चाहे विदिशा की टेलीफोन फैक्ट्री को लेकर आंदोलन करना हो,चाहे भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने का संघर्ष हो या फिर सर्कस में मौजूद बंधुआ बच्चे-बच्चियों की मुक्ति की जंग हो !
युवा जनता के अध्यक्ष कैलाश सत्यार्थी के महासचिव चौ.मुनव्वर सलीम अपनी ख़ुशी में नाम आँखों से कहते हैं कि ” ‘दद्दा’ के मन में कमज़ोर,पीड़ित और शोषित समाज का इतना दर्द था कि एक बार विदिशा स्थित दुर्गानगर इलाके में आदिवासियों के झोपड़ों में आग लगी तो ‘दद्दा’ (कैलाश सत्यार्थी जी) बिना अंजाम की परवाह किये बग़ैर आदिवासियों को बचाने के लिए जलती हुई आग में कूद गए जिस कारण ‘दद्दा’ के हाथ तक इस हादसे में झुलस गए ! सलीम और सत्यार्थी के संबंधों के बारे में उनके अन्य मित्रगण बताते है कि सलीम रात का भोजन सत्यार्थी जी के घर में उनकी माँ के हाथ से बना हुआ खाते थे , रात को जो खाना भी इन दोनों मो प्राप्त होता था आपस में बांटकर खा लेते थे !
कैलाश सत्यार्थी जी के मन में तो राजनीती से ज़्यादा समाजसेवा की ज्वाला भड़की हुई थी जिसके चलते वह अपने राजनैतिक शिष्य चौधरी मुनव्वर सलीम को युवा जनता का अध्यक्ष बनाकर दिल्ली चले गए और यहां उन्होंने बाल दासता और बंधुआ मज़दूरी के विरोध में एक एनजीओ का गठन कर इसके बैनर तले संघर्ष करना शुरू कर दिया ,वहां भी कैलाश सत्यार्थी जी अपने सबसे प्रतिभाशाली संघर्ष के साथी मुनव्वर सलीम को नहीं भूले और इस एनजीओ में अहम पद पर सलीम को जगह दी गयी !
मुनव्वर सलीम और कैलाश सत्यार्थी के मध्य इस जज़्बाती रिश्ते की गवाही वोह आश्रम की बेशकीमती भूमि भी है जिसका मालिकाना हक़ कैलाश सत्यार्थी जी ने मुनव्वर सलीम साहब को दे रखा है चूंकि जिस दौर में एक-एक फिट के ज़मीन के टुकड़े के लिए एक सगा भाई अपने दुसरे सगे भाई का खून बहाने पर उतारू है वहां एक हिन्दू -एक मुस्लिम के नाम से बाल मज़दूरों की भलाई के लिए बेश कीमती जायदाद बाल आश्रम बनाने के लिए खरीदता है तो प्रेम और विशवास की परकाष्ठा नहीं तो क्या है ?
सांसद सलीम और नोबेल पुरूस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के बीच क्या रिश्ता है इसकी गवाही सलीम के परिवार में होने वाले शादी-ब्याह के निमंत्रण पत्र भी चीख-चीख कर दे रहे हैं ! मुनव्वर सलीम की बेटियों के शादी कार्ड पर स्वागतकांछी के रूप में कैलाश सत्यार्थी का नाम ऐलान करता है कि चौधरी परिवार में कैलाश सत्यार्थी जी की हैसियत घर के बुज़ुर्ग के बराबर है ! और सत्यार्थी भी अपना हक़ चौधरी परिवार पर इतना रखते हैं कि मुनव्वर सलीम के परिवार की शादियों में सलीम की जगह कैलाश सत्यार्थी इस्तक़्बाली के रूप में दरवाज़े पर मेहमानों के स्वागत के लिए स्वयं खड़े रहते हैं ! इसी प्रकार कैलाश सत्यार्थी जी भी अपने परिवार के कई अहम मामलों में मुनव्वर सलीम को इस प्रकार बैठालते है जिस प्रकार परिवार के समझदार और ज़िम्मेदार को बैठाया जाता है!
चौधरी मुनव्वर सलीम और कैलाश सत्यार्थी के मध्य एक ऐसा जज़्बाती रिश्ता है जो कभी मोहनदास करमचंद गांधी और खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान के बीच ,कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के बीच और वर्तमान भारतीय राजनीत में मुलायम सिंह यादव और मो.आज़म खान के बीच दिखाई देता है !
कैलाश सत्यार्थी और चौधरी मुनव्वर सलीम के बीच मौजूद इस जज़्बाती रिश्ते की एक मिसाल उस समय दखाई देती है जब आज से लगभग १२ साल पूर्व दिसम्बर २००२ में चौधरी मुनव्वर सलीम को दिल का दौरा पड़ा तो गंभीर हालत में सलीम को दिल्ली इलाज के लिए रेफर किया गया तब कैलाश सत्यार्थी विदेश दौरे पर थे लेकिन उनकी पत्नी सुमेधा सत्यार्थी और पुत्र भुवन सत्यार्थी ह.निज़ामुद्दीन स्टेशन पर एम्बुलेंस लिए खड़े थे ! हालांकि इलाज का सारा खर्च समाजवादी पार्टी ने उठाया था लेकिन उस समय की दो घटनाएं याद कर आज भी मेरे मन में जज़्बात का समुन्द्र उमड़ पड़ता है ! हलांकि मैं उस समय कम उम्र था लेकिन कुछ जुमले और घटनाएं इंसानी ज़हन पर इस तरह चस्पा हो जाती है जो समय-समय पर याद आती रहती है उनमे पहली धटना तो थी उस समय के उप्र विधानसभा के नेता विरोधी दाल मो.आज़म खान साहब का रात भर सड़क मार्ग से सफर कर एस्कार्ट हॉस्पिटल दिल्ली पहुंचना चूंकि जब से मैंने होश संभाला है तबसे लेकर आज तक ,मैंने मो.आज़म खान साहब को इस परेशानी,बेचैनी और बदहाली की स्थिति में न तो उस दिन से पहले देखा था और न ही उस दिन के बाद से आज तक देखा है !
दिसंबर महीने की कड़ाके की ठण्ड में जिस हालत में मो.आज़म खान साहब वहां पहुंचे थे बस एक बाफी अपने बेटे की बीमारी पर ही इतना परेशान हो सकता है इस परेशानी को मो.आज़म खान साहब के चेहरे और माथे से लेकर उनकी काली शेरवानी तक पर पडी हुई सिलवटे साफ़-साफ़ ब्यान कर रहीं थीं !
ख़ैर जज़्बात की लहरें मुझे और मेरी कलम को कुछ देर के लिए उनवान से भटका कर कहीं और ले गयी थी ! जैसा की मैंने ऊपर लिखा है कि जब हम लोग चौधरी मुनव्वर सलीम साहब को एस्कार्ट हॉस्पिटल लेकर पहुंचे तो जिन दो घटनाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया था उनमे से एक घटना तो मैं आपको बता चुका हूँ दूसरी घटना यह थी कि उस समय कैलाश सत्यार्थी जी के सुपुत्र भुवन सत्यार्थी हमारे साथ ही हॉस्पिटल पहुंचे चौधरी और सत्यार्थी परिवार के बीच मौजूद रिश्तों को मैं ऊपर ब्यान कर चुका हूँ इसीलिए दोनों परिवार एक-दुसरे की आर्थिक हालत से बखूबी वाक़िफ़ थे ! जब स्ट्रेचर पर लैटाल कर चौधरी मुनव्वर सलीम साहब को भर्ती करने के लिए लेकर जाय जा रहा था तब भुवन सत्यार्थी ने अपना डेबिट कार्ड रिसेप्शिनिस्ट की टेबिल पर रखा और कहा कि ” मेरे चाचा के इलाज में अगर एक करोड़ रुपया भी लगता है तो लगाया जायेगा पैसे की चिंता किये बग़ैर तुरंत इलाज शुरू किया जाये ”
इतना ही नहीं जब चौधरी मुनव्वर सलीम का सफल आपरेशन हो गया तब डॉक्टर्स ने यह सलाह दी कि एक माह तक आपको दिल्ली में ही रहना पडेगा तब मो.आज़म खान साहब ने उप्र भवन में एक कमरा चौधरी मुनव्वर सलीम साहब के लिए आवंटित करा दिया लेकिन सत्यार्थी परिवार ने कहा कि जब हमारा घर यहां मौजूद है तब यह कैसे संभव है कि “सलीम चाचा” कहीं ओर रुकें और एक माह तक कैलाश सत्यार्थी जी ने,उनकी धर्म पत्नी सुमेधा सत्यार्थी जी ने ,उनके सुपुत्र भुवन सत्यार्थी जी “सोना” ने और उनकी सुपुत्री अस्मिता सत्यार्थी “बेटू” ने चौधरी मुनव्वर सलीम साहब की ऐसी सेवा की जैसे कोई बाप अपने बेटे की ,कोई माँ समान भाभी अपने देवर की,कोई लायक भतीजा अपने चाचा की और कोई लगनशील घरेलू बेटी अपने पिता की सेवा करती है !
दोनों परिवारों के बीच जज़्बातों से लबरेज़ ऐसी कई दास्ताने हैं जिनसे एक आर्टिकल नहीं बल्कि एक मुकम्मल किताब लिखी जा सकती है ! इन्ही दास्तानों में से मुझे एक दास्तान वोह भी याद आ रही है जब गोरखपुर उप्र के पास एक सर्कस से बंधुआ और बाल मज़दूरों को छुड़ाने के उद्देश्य से कैलाश सत्यार्थी जी सर्कस में जान की बाज़ी लगाकर घुस गए थे ,वहां पर घात लगाये सर्कस प्रशासन ने कैलाश सत्यार्थी जी सहित उनके सुपुत्र भुवन सत्यार्थी और उनकी टीम पर जान लेवा हमला कर दिया ! सत्यार्थी जी सहित उनके साथी गंभीर रूप से घायल हो गये !
जैसे ही यह दुर्घटना घटित हुई वैसे ही कैलाश सत्यार्थी जी ने अपने सबसे करीबी चौधरी मुनव्वर सलीम साहब को दूरभाष पर सूचना दी कि मुझ पर सर्कस माफ़िया ने हमला कर दिया है और मुझे गंभीर चोटें आयी हैं इतना ही नहीं मेरे ऊपर माफ़िया द्वारा फायरिंग भी की गयी है !
कैलाश सत्यार्थी जी द्वारा दी गयी इस दुःखद सूचना के मिलते ही चौधरी मुनव्वर सलीम साहब जिस हालत में बैठे थे वैसे ही उठे और सड़क मार्ग से सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर विदिशा मप्र से गोरखपुर उप्र के लिए रवाना हो गए लेकिन दुर्भाग्यवश लगभग रात्री ३ बजे क्कनपुर के करीब उनका भीषण कार एक्सीडेंट हो गया ,कार में मौजूद सभी साथी बुरी तरह घायल हो गए ! इस एक्सीडेंट में चौधरी मुनव्वर सलीम साहब के पैर की हड्डी चकना चूर हो गयी जिसके कई आपरेशन हुए ! कानपुर,भोपाल और दिल्ली में भी चौधरी मुनव्वर सलीम के ज़ख्मी पैर का सफ़ल इलाज न हो सका तब जाकर मुम्बई में मुनव्वर सलीम साहब के पैर सफ़ल आपरेशन कराया गया !
लेकिन उक्त कार दुर्घटना ने हमेशा-हमेशा के लिए मुनव्वर सलीम साहब के हाथों में सहारे से चलने के लिए बैंत थमा दिया ! आज भी मुनव्वर सलीम साहब के हाथों में मौजूद यह बैत कौलाश सत्यार्थी जी और मुनव्वर सलीम साहब के बीच मौजूद जज़्बाती रिश्ते को चीख-चीख कर ब्यान कर रहा है !
कैलाश सत्यार्थी जी और चौधरी मुनव्वर सलीम साहब के बीच मौजूद यह रिश्ता केवल दो व्यक्तियों या दो विचार धाराओं का संगम ही नहीं हैं बल्कि दो परिवारों के बीच मौजूद संबंधों की एक ऐसी मज़बूत दास्तान है जिसके जितने भी पन्ने पलटे जायेंगे तो रिश्तों की एक ऐसी तहरीर नज़रों के सामने आ जाएगी जिसको पढ़कर आने वाली नस्लों को भी गंगा-जमनी संस्क्रती की वह शिक्षा मिलेगी जिसकी आज के और भविष्य के हिन्दुस्तान को ज़रुरत है !
इस जज़बाती दास्तान का एक हिस्सा मैं भी हूँ जब आज से तक़रीबन ८ साल पहले मेरी वालिदा मोहतरमा की ओपन हार्ट सर्जरी दिल्ली में हुई उसके पश्चात कुछ समय के लिए डॉक्टर्स ने यह सलाह दी कि आप दिल्ली से बाहर नहीं जा सकते ,तो मैं और मेरी वालिदा दिल्ली में ही रुक गए एक रोज़ रात में अचानक मेरी माँ की तबियत बिगड़ गयी कम उम्री और माँ-बेटे के बीच मौजूद जज़्बाते रिश्ते की बिना पर मैं बहुत घबरा गया और मैंने मेरे मामू चौधरी मुनव्वर सलीम साहब को फोन कर कहा कि ” अम्मी की तबियत अचानक बहुत बिगड़ रही है आप कुछ करिये ” तब उन्होंने मुझसे कहा कि फ़ौरन अपनी माँ को हॉस्पिटल लेकर पहुँचो , जब हम हॉस्पिटल पहुंचे तो देखा कि वहां हमारे पहुँचने से पहले ही हॉस्पिटल के दरवाज़े पर कैलाश सत्यार्थी जी के सुपुत्र भुवन सत्यार्थी जी “सोना भैया” मौजूद थे ! डॉक्टर्स से सलाह मशवरे के बाद लगभग २-३ घंटे तक मेरी माँ को भर्ती रखने के पश्चात जब तबियत ठीक हो जाने पर हॉस्पिटल से छुट्टी हुई तब जो जुमला भुवन सत्यार्थी जी “सोना भैय्या” ने बोला वह आज तक मेरे दिल-दिमाग़ पर गहरा असर रखता है ! उन्होंने मेरी माँ से कहा की ” बुआ अब आप ठीक हैं मैं घर जा रहा हूँ चूंकि जब मुझे आपकी तबियत खराब होने की खबर मिली तब मैं खाने की टेबल पर थाली लगा कर ही बैठा था आपकी सूचना मिलते ही मैं खाना टेबिल पर वैसा का वैसा ही रखा छोड़ आया हूँ ” !
भुवन सत्यार्थी जी के इन जुमलों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैलाश सत्यार्थी जी और चौधरी मुनव्वर सलीम साहब के परिवार में कैसा जज़्बाती रिश्ता है !
मैं जज़्बात कि रोशनाई में डूबी इस क़लम को इस सन्देश के साथ विराम देना चाहता हूँ कि काश मुल्क में नफ़रत की खेती करने वाले,हिन्दू-मुस्लिम के बीच धर्म,सम्प्रदाय और जात-पात की दीवार खड़ी करने वाले,मुल्क में मंदिर-मस्जिद के नाम पर अलगाव की आग सुलगाने वाले और दंगों की आंच में अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले यह लोग कैलाश सत्यार्थी जी और चौधरी मुनव्वर सलीम साहब के बीच मौजूद इस जज़्बाती और अटूट रिश्ते को समझ सकते ! मुझे उम्मीद ही नहीं बल्की पूरा यक़ीन है कि आने वाली नस्ले जब दुनिया के सबसे बड़े सम्मान से सम्मानित नोबल पुरूस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी के जीवन को इतिहास के रूप में देखेंगी तो उनकी जीवन शैली में मौजूद सदाचार,करुणा,सादगी,कमज़ोर के साथ खड़े होने का साहस और उन मासूम बच्चों के हितों के रक्षक के रूप में कैलाश जी को पड़ेगीं जिन मासूमों से बदले में ज़िंदाबाद या फिर तालियों की भी उम्मीद नहीं की जा सकती तब कैलाश सत्यार्थी जी की विचारधारा में मौजूद हिन्दू-मुस्लिम एकता भी आने वाली नस्लों को वह शिक्षा देगी जिसकी ज़रूरत नए भारत के निर्माण में महसूस की जा रही है !
मैं ही नहीं बल्कि पूरा एशिया महद्वीप उस समय गौरवान्वित हो गया जिस समय माँ भारती के लाल कैलाश सत्यार्थी जी ने रविन्द्र नाथ टैगोर जी के बाद दूसरा नोबल भारत माता की गोद में लाकर डाल दिया! लेकिन इस समय मुझे उन भारत सरकारों के रवैय्ये ने भी बड़ा दुःख पहुंचाया जिन्होंने कैलाश सत्यार्थी जी को देश का कोई बड़ा सम्मान उनके इस जज़्बे के लिए नही दिया ! हम भारत वासी किस संस्क्रती की तरफ जा रहे हैं इस पर मंथन करें !
कैलाश सत्यार्थी जी की प्रतिभा को दुनिया ने सलाम किया लेकिन भारत ने नहीं ,उनके राजनैतिक शिष्य चौधरी मुनव्वर सलीम को उप्र से राजयसभा के रूप में सम्मान मिला लेकिन उनके प्रदेश में जब-जब उन्होंने हाथ फैलाया हम प्रदेशवासियों ने उनके हाथों पर अंगारे रख दिए !
ऐसा नहीं हैं कि केवल कैलाश सत्यार्थी जी और चौधरी मुनव्वर सलीम साहब इस तरह की संकीर्ण विचारधारा के शिकार हैं देश में बापू इस ज़ुल्म की सबसे बड़ी मिसाल हैं ! बापू के त्याग,तपस्या,और अहिंसा को आज भी दुनिया सलाम करती है लेकिन हम भारतियों ने बापू के प्रेम से लबरेज़ सीने को गोलियों से छलनी कर दिया ! क्या आने वाली नस्ले इस बेरहमी और बेरुखी की बेड़ियां तोड़कर हिन्दुस्तान की नयी तारिख लिखने का काम कर पाएंगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा !
M. Aamir Ansari
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