तेज़ाब हमलों पे कुछ पंक्तियाँ

सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी

चलो,
फेंक दिया
सो फेंक दिया ….
अब कुसूर भी बता दो मेरा
तुम्हारा इज़हार था
मेरा इनकार था

बस इतनी सी बात पर
फूँक दिया चेहरा ……
ग़लती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
के उसको समझ न सकी….

अब अपनी ग़लती मानती हूँ
क्या …अब तुम अपनाओगे मुझको ?
क्या …अब अपना बनाओगे मुझको ?
क्या …लबों से चूमोगे मेरे होंठों को ?
जो अब दिखाई नहीं देते…

क्या …सहलाओगे मेरे चेहरे को ?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आँखों में देखोगे आँखें डाल कर ?
जो अब अन्दर धंस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलिया,
मेरे गालों पर ?
जिन पर पड़े छालों से अब
पानी निकलता है ….

हाँ ! शायद तुम कर लोगे …
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है…..

है ना ???

अच्छा ! एक बात तो बताओ
ये ख़याल तेज़ाब का,
कहाँ से आया ?
किसी ने बताया ?
या ज़ेहन में तुम्हारे
खुद ही आया ?
अब कैसा महसूस करते हो तुम
मुझे जला कर ?
गौरवान्वित???
या पहले से ज़्यादा
और मर्दाना ???

तुम्हें पता है
सिर्फ़ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बचा है

एक सलाह दूँ !
एक तेज़ाब का तालाब बनवाओ
फिर उसमे मुझसे छलांग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊँगी मैं
फिर प्यार तुम्हारा गहरा होगा
और सच्चा होगा ….
एक दुआ है …

अगले जन्म
मैं तुम्हारी,
बेटी बनूँ
और तुम जेसा सच्चा “आशिक़ ”
फिर मिले …..!
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
लेखक अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार व साहित्कार हैं

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