राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने राजस्थान के भरतपुर में धर्मांतरण को लेकर जो बयान दिया है, उस पर देशभर में बबेला हो रहा है। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के नेताओं के विरोध से तो प्रतीत होता है कि जैसे कांग्रेस के घर में कोई हमला हो गया है। न्यूज चैनल और अखबार भी अपने नजरिए से भागवत के बयान की व्याख्या कर रहे हैं। कुछ चैनलों पर तो लाइव बहस भी शुरू हो गई है। सवाल उठता है कि आखिर भागवत ने ऐसा क्या कहा? भागवत ने कहा कि गरीब की सेवा में धर्मांतरण का भाव नहीं होना चाहिए। अपने इस बयान के साथ भागवत ने मदर टेरेसा का नाम भी जोड़ दिया। अब यदि मदर टेरेसा ने भारत में नि:स्वार्थ भावना से गरीब की सेवा की है तो फिर विरोध क्यों हो रहा है? भागवत ने अपने बयान में यह भी कहा है कि मदर टेरेसा ने अच्छी तरह गरीब की सेवा की है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मदर टेरेसा और उनके बाद उनके अनुयायी देश में सेवा की भावना से शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि देश के कई प्रांतों में और आदिवासी क्षेत्रों में गरीब वर्ग के लोगों ने बड़ी संख्या में ईसाई धर्म अपनाया है। भारत में आज भी सैंकड़ों ईसाई संस्थाए सक्रिय है, जो चमत्कार के नाम पर गरीब लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करती हैं। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हंै, जिन्हें करोड़ों रुपया यूरोप के देशों से अनुदान के रूप में मिलता है। हम सब जानते हैं कि देशभर में ईसाई संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर शिक्षा और चिकित्सा के संस्थान चलाए जाते हैं। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने पूर्व में जब प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं के लिए आरटीई कानून बनाया तो इस कानून के दायरे से ईसाई शिक्षण संस्थाओं को बाहर रखा गया। यही वजह है कि आज देशभर में ईसाई संस्थाओं की शिक्षण संस्थाओं पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। संस्थान के संचालक अपनी मर्जी से फीस निर्धारित करते हैं और प्रवेश के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। समझ में नहीं आता कि कांग्रेस के नेता धर्मांतरण के मुद्दे पर हर बार क्यों जहर उगलते हैं। मीडिया और कांग्रेस के नेताओं को यह समझना चाहिए कि यदि सातवीं शताब्दी में अफगानिस्तान और अरब देशों के लुटेरे भारत में नहीं आते तो यहां हिन्दू और सिंधु संस्कृति ही कायम रहती। चूंकि 800 वर्षों तक इस देश पर मुगल बादशाहों का शासन रहा, इसलिए आजादी के समय पाकिस्तान भी बन गया। चूंकि 200 वर्षों तक अंग्रेजों ने शासन किया, इसलिए भारत में ईसाई धर्म को मानने वाले भी जन्म लेते रहे। देखा जाए तो भारत में ताकत के बल पर धर्मांतरण हुआ है। इतिहास गवाह है कि गुलामी के दौर में भारत के लोगों पर कितने अत्याचार हुए हैं। आज भी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। यदि संघ प्रमुख भागवत ने यह कहा कि गरीब की सेवा में धर्मांतरण का भाव नहीं होना चाहिए, तो इसमें क्या बुराई है? जिस तरह से भारत के अंदर और आसपास के देशों में आतंकवाद पनप रहा है, उससे विरोध करने वालों को कुछ तो सबक लेना चाहिए। हम यह तो देखे कि आखिर भारतीय संस्कृति को कितना नुकसान पहुंचाया गया है। देश की एकता और अखंडता की खातिर राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह भी कांग्रेस की तरह एक राजनीतिक दल है और उसका उद्देश्य भी येनकेन प्रकारेण सत्ता हासिल करना है। इसलिए जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा सरकार बना रही है। अच्छा हो कि भागवत के बयान को सेवा की भावना से जोड़कर ही देखा जाए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511