वैसे तो रंगों का त्यौहार होली भारतीय संस्कृति के लिहाज से दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखती है लेकिन भारत के अलग अलग हिस्सों में होली का त्यौहार माने के अलग अलग तरीके हैं । बहुतायत तो होली अबीर और गुलाल जैसे विभिन्न रंगों से खले जाने वाला मुख्य त्यौहार है लेकिन भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अन्य तरीकों से भी मनाया जाता है जिसमे बृज की होली, लठमार होली जैसे कई रूप होली के हैं कई जगह होली घिंदड़ नृत्य और कई जगह घूमर के खेली जाती है । इन सबमे हटकर है डीडवाना की होली ।
डीडवाना जहाँ प्राचीन समय से दो तरीकों से होली मनाई जाती है और दोनों ही तरीके देश भर में सबसे अलग है । डोलची मार या हाकम की राज गेर तथा माली समाज की स्वांग गेर । स्थानीय माली समाज द्वारा निकाली जाने वाली स्वांग गैर देश भर में अपने अनूठे तरीके के लिए जानी जाती है। अलग स्वांग बनाकर निकलने वाली सेंकडों युवाओं की टोलियाँ सब को अपनी और आकर्षित करती है। विचित्र वेश भूषाओं के कारण इसकी तुलना ब्राजील के कार्निवाल से भी की जाती है। हालाँकि बुजुर्गो की मानें तो समय के साथ इसमें काफी बदलाव देखा गया है । जो प्रेम और भाईचारा पुराने समय में था वो आज नजर नहीं आता लेकिन वर्षों पुरानी यह परम्परा आज भी कायम है ।
डीडवाना के माली समाज के 12 बासों की ओर से जहां हजारों लोग एक साथ इकठ्ठा होकर होली खेलते हैं और नए-नए स्वांग रचते हैं। डीडवाना में जिस तरह से होली मनाई जाती है वह भारत भर में नहीं मनाई जाती| जिसकी तुलना कई बार ब्राजिल के विश्वप्रसिद्ध कार्निवाल से भी की जाती है। लेकिन क्योकिं इसमें भारतीय संस्कृति का सम्मान रखा जाता है इसलिए यहां इसमें ब्राजिल की तरह फूहड़ता ना होकर भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है।
जहां एक ओर पूरे भारत भर में धुलंडी के दिन हर खासो आम होली के हुड़दंग में मस्त रहता है तथा रंगों से पूरा माहोल सराबोर रहता है वहीं डीडवाना में माली समाज के लोग गेरो में लगे रहते हैं । माली समाज के 12 बासों के लोग अलग अलग तरह के स्वांग बनाकर मैदासर बास पहुंचते हैं वहां से सभी टोलियां एक साथ पूरे नगर की परिक्रमा करते हुए यह जुलूसनुमा गैर निकालते हैं जिसके लिए हर समुदाय के लोग पलक फावड़े बिछाकर इसका स्वागत करते हैं ।इस बार आप भी देखना न भूले डीडवाना की होली गैर जो होली के दुसरे दिन यानि छारंडी को विशेष होती है।
हनु तंवर निशब्द