27 मार्च को दिल्ली में आप के नेता प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने प्रेस कांफे्रंस कर जिस प्रकार दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल और उनके समर्थकों पर आरोप लगाए उससे प्रतीत होता है कि ईमानदार और समझदार लोग एकजुट नहीं रह सकते। इसमें दिल्ली के नागरिकों की भावनाओं को भी ठेस पहुंची है। जिन मतदाताओं ने 70 में से 67 विधायक आप पार्टी के जिताए उन्हें अब यह लगता है कि राजनीति में उनसे भूल हो गई है। आज प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव सहित 4-5 लोगों ने बगावत का झंडा उठाया है। आने वाले दिनों में आप के विधायक भी केजरीवाल के खिलाफ बोलेंगे। विधायकों में जब फूट सामने आएगी तब भाजपा के नेता उपराज्यपाल के पास जाकर विधानसभा को भंग करवाने की मांग करेंगे। जो मांग एक माह पहले केजरीवाल उपराज्यपाल से कर रहे थे, वही मांग अब भाजपा की ओर से होने वाली है। केजरीवाल कितना भी जोर लगा ले, लेकिन आप की बगावत को रोका नहीं जा सकता। असल में भारत में अब राजनीति का अपना एक नजरिया हो गया है। राजनीति अब धर्म, जाति, समाज आधारित हो गई है। जिस तरह दिल्ली में आप का बिखराव हो रहा है। उससे लोगों को यही लगता है कि कांग्रेस, भाजपा जैसे राजनीतिक दल ही सरकार चला सकते है। भले ही इन दलों की सरकारों से लोग कितने भी परेशान रहे। दिल्ली की जनता ने कांग्रेस और भाजपा जैसे स्थापित दलों को पीछे धकेलते हुए ईमानदार और समझदार लोगों को आगे बढ़ाया उस पर अब पानी फिर गया है। आज नहीं तो कल केजरीवाल को दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा। दिल्ली के लोगों ने राजनीति में जो एक अच्छा प्रयोग किया था, वह पूरी तरह विफल हो गया है। अब यह माना जाना चाहिए कि राजनीति में वो ही लोग सफल हो सकते है, जो राजनीति के हथकंडे जानते है। राजनीतिक दलों को चलाने में उद्योगपतियों, व्यापारियों, और धर्म के नुमाइदों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अच्छा हो कि केजरीवाल अपनी ओर से ही इस्तीफा देकर पुन: जन आंदोलन में लग जाए। सरकार चलाना केजरीवाल के बस में नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511