
हिन्दुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष मुल्क है यहाँ सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएं और रीती-रिवाज है ! धार्मिक दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म के मानने वालों की बहुलता है ! सभी धर्मों में अनेक प्रकार की धार्मिक पाबंदियें तथा मनयताएं क़ायम की गयी हैं ! किन्तु सामाजिक सदभाव बनाये रखने के लिए बकौल-ए-शरीयत पड़ोसी का अहतराम लाज़मी करके शरीयत ने सद्भावना का माहौल बनाये रखने का पूरी मुस्तैदी से प्रयास किया गया है !
हम इस वक़्त नए हिन्दुस्तान के टीपू सुलतान यानी मो. आज़म खां साहब द्वारा 05 अप्रैल 2015 को आदिनाथ जगत गुरु शंकराचार्य पुरी पीठ अधोक्षजानंद जी के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में माननीय मो. आज़म खान साहब द्वारा किये जाने वाले एक विशाल गौशाला के शिलान्यास का तज़किरा करना चाहते हैं ! माननीय मुलायम सिंह यादव के मंत्रीमंडल में और अब माननीय अखिलेश यादव जी के मंत्रीमंडल में मो. आज़म खान साहब की मौजूदगी हमेशा मुल्क को एक मज़बूत पैगाम देती रही है ! बाबरी मस्जिद तहरीक के सरबराह की हैसियत से देश और दुनिया को हिन्दुस्तानी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का अहसास कराते रहने वाले मो. आज़म खान साहब 1993 में मा. मुलायम सिंह यादव जी के मंत्री मंडल में कामयाब अर्धकुंभ और 2012 में मा.अखिलेश यादव जी के मंत्रीमंडल में कामयाब महाकुंभ के संचालक और शासक की भूमिका ऐतिहासिक तौर पर अदा कर चुके हैं ! आज जब एक महान सनातनी धर्मगुरु के आमंत्रण पर महाराज कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में स्थित गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर मो. आज़म खान साहब गौशाला के शिलान्यास हेतु जा रहे हैं तब देश में एक नयी बहस की शुरुवात वोह लोग ज़रूर महसूस करेंगे जिन्होंने गाय को सियासत के आईने में रखकर हमेशा वोटो की राजनीत का प्रयास किया है !
हम आलेख के माध्यम से तंगदिल सियासी ऐसे लोगों को हिन्दुस्तान की सुनहरी तारीख़ से जोड़कर गाय की हिफाज़त के लिए ,मुस्लिम शासकों द्वारा लिए गए फैसलों से अवगत कराना चाहते हैं ! अवाम के अहसास को जज़्बाती कर के गाय को वोट बना कर सियासत करने वाले लोग यह जान लें कि हिन्दुस्तानी सियासत में मुस्लिम शासकों ने हमेशा गाय को अहतराम की निगाह से देखा है और उसकी हिफाज़त के लिए तारीखी ऐलानात किये हैं , जो गाय के नाम पर नफरत की राजनीत करने वालों को हमेशा रास्ता दिखाते रहेंगे !
इस वक़्त मौजूदा हिन्दोस्तान में जब हुकूमत में बैठे हुए लोग नफरत की आँधियाँ चलाने पर आमादा हैं तब तारिख के सुनहरी ऐलानात से हिन्दुस्तानी अवाम को वाबस्ता करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ ! मैं उस बाबर का तारीखी फैसला अवाम के दरम्यान रखना चाहता हूँ जिन्हे एक शासक के रूप में एक दल विशेष ने देशवासियों के बीच हमेशा खलनायक क़रार दिया है और नफरत अंगेज़ सियासत को इस इंतेहा तक पहुंचाया है कि यह सियासी नारा अवाम के बीच गूंजता रहा कि ” राम का बदला लेना है बाबर की औलादों से ” उसी बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ को अपनी बीमारी के दौरान जो वसीयत की हम उसका हिन्दी रूपांतरण उसी के शब्दों में पेश करना चाहते हैं ! इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मुग़ल बादशाह बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ को वसीयत की थी कि ” 1- तुम्हारी ज़िंदगी में धार्मिक भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए,तुम्हें निष्पक्ष होकर इन्साफ करना चाहिए , जनता के सभी वर्गों की धार्मिक भावना का हमेशा ख्याल रखना चाहिए !
2- तुम्हें गौहत्या से दूर रहना चाहिए ऐसा करने से तुम हिन्दुस्तान की जनता में प्रिय रहोगे इस देश के लोग तुम्हारे आभारी रहेंगे और तुम्हारे साथ उनका रिश्ता भी मज़बूत हो जाएगा !
3- तुम किसी समुदाय के धार्मिक स्थल को न गिराना हमेशा इन्साफ करना जिससे बादशाह और प्रजा का संबंध बेहतर बना रहे और देश में भी चैन,अमन क़ायम रहे ! ”
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर ने 28 जुलाई 1857 को बकरीद के मौके पर हिन्दू मुस्लिम इत्तेहाद की खातिर एक मज़बूत ऐलान करते हुए बकरीद के त्यौहार में भी गाय की क़ुरबानी नहीं करने का फरमान जारी किया था ! इसी फरमान में बहादुर शाह ज़फर ने गाय का क़त्ल करने वालों को सज़ा-ए-मौत तजवीज़ की थी ! जब भी गाय की हिफाज़त को लेकर कोई तारीखी तज़किरा मंज़र-ए-आम पर किया जाएगा तब इस सच से भी अवाम को अवगत करना हर हिन्दुस्तानी का फ़र्ज़ है कि दक्षिण में अँगरेज़ की हुकूमत को हिला देने वाले हैदर अली और सुलतान टीपू ने भी अपनी हिन्दू अवाम की भावनाओं का अहसास करते हुए गौ हत्या को प्रतिबंधित किया था !
इतिहास को अपने पैरों से रौंद कर गाय के सवाल पर राजनीत करने वाले लोग और सुलतान टीपू को हिन्दू विरोधी बताने वाले तंग नज़र सियासतदां इस सच को भी जाने कि नवाब-ए-अवध वाजिद अली शाह सहित मुस्लिम शासकों ने हमेशा हिन्दू भाइयों के मज़हबी अहसास का अहतराम करते हुए गौ कशी का विरोध किया था ! गाय को श्रद्धा के आईने से अलग कर सियासत के आईने में देखने वाले सियासतदानों का तज़किरा इसलिए लाज़मी है ताकि अवाम यह जान सके कि अनेक बार हुकूमत में रहने के बाद भी आज तक मुस्लिम शासकों की तरह गाय की हिफाज़त के लिए कोई मज़बूत फैसला मंज़र-ए-आम पर नही आया है !
गौर तालाब है कि मांस से ज़्यादा गाय के अवशेषों का व्यापार मुनाफ़ा कमाने का एक बड़ा माध्यम है ! यही कारण है कि 1.25 अरब के इस देश में दुधारू पशुओं की तादाद स्वयं केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनीमल हस्बेंडरी के मुताबिक़ 1951 में जब देश की आबादी 40 करोड़ थी तब दुधारू पशुओं की तादाद 15 करोड़ 53 लाख थी और आज जब देश की आबादी 1.25 अरब के करीब है तब इन पशुओं की तादाद मात्र 16 करोड़ बाक़ी बची है !
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी विधानसभा उप्र में अपने तारीखी उद्बोधन में देश के जाने माने पार्लियामेन्ट्रियन और बहुचर्चित नेता मो.आज़म खान साहब ने दुधारू जानवरों की कमी,दूध से बनने वाली चीज़ों और दूध की पैदावार तथा खपत का तज़किरा करते हुए कहा था कि केंद्र इस पर कोई मज़बूत एवं निष्पक्ष नीतिगत क़ानून बनाये तभी हिन्दुस्तानी अवाम को शुद्ध दूध पिलाया जा सकता है ! इतना ही नहीं माननीय मो. आज़म खान साहब जब गाय की हिफाज़त पर चर्चा करते हुए सियासत के सौदागरों से गाय के अंगों के इस्तेमाल पर क़ानून बनाने की बात कहते हैं तो उन्हें गाय के चमड़े,गाय के सींग तथा गाय के अन्य अंगों का व्यापार करने वाले उधोगपतियों की नाराज़गी का शिकार होना पड़ता है ! लेकिन गाय को सिर्फ राजनीत का अस्त्र बनाकर रक्षा की बहस चलाने वाले लोग गाय की बुनियादी हिफाज़त पर संसद से सड़क तक कभी कोई मज़बूत दस्तावेज़ नहीं ल सके !
मैं सोचता हूँ कि गाय की हिफाज़त के लिए यह लाज़मी है कि गाय से धार्मिक श्रद्धा रखने वाले लोग देश में सामाजिक चेतना पैदा कर गाय को लावारिस छोड़ने वालों और बेचने वालों को भी अपराध की परीधी में शामिल करें ! और तथाकथित गौसेवक तथा गौभक्त अपने ड्रॉइंग रूमों में से अंग्रेज़ी कुत्तों को बाहर निकालते हुए बाहर सड़क पर से गाय के बच्चों को अपने ड्रॉइंग रूमों की शोभा का सामान बनाएं जिससे समाज में गाय के प्रति श्रद्धा का माहौल तैयार हो जिससे अन्य धर्मों के लोगों में भी गाय की हिफाज़त का अहसास प्राचीन काल के भाँती पनपेगा !
मैं इस आलेख का अंत इस सच्चाई पर करना चाहता हूँ कि गाय और सूअर को लेकर सन 1700 ई.में अंग्रेज़ ने भारत के हिन्दू-मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने की शुरुवात की थी ! लेकिन यह एक बद किस्मती का पहलू है कि यही सिलसिला आज भी जारी है ! आज हिन्दुस्तान को समृद्ध और सशक्त बनाने के लिए एक दुसरे की धार्मिक भावनाओं का अहतराम उतना ही लाज़मी है जितना सैकड़ों साल पहले था ! इसीलिये देशवासियों को धार्मिक भावनाओं पर राजनीत करने वाले लोगों से होशियार रह कर यथार्त के धरातल पर खड़े होकर राजनेता और राजनीती को देखना होगा !
5 अप्रैल 2015 गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर 21 वीं सदी के टीपू सुलतान यानी मो. आज़म खान साहब का गौशाला सम्बन्धी शिलान्यास धार्मिक सहषुणीता की नई इबारत लिखेगा और यह साबित करेगा कि एक महान पवित्र विचारों से युक्त संत शंकराचार्य अधोक्षजानंद साहब और पाकीज़ा हिन्दुस्तानी विचारों से लबरेज़ एक मज़बूत बाउसूल मुसलमान मो. आज़म खान साहब की निकटता हिन्दुस्तान में धार्मिक सहषुणीता का रास्ता बनेगी जिसकी नए हिन्दुस्तान के सियासी हालात में रोटी से भी ज़्यादा ज़रूरत महसूस की जा रही है !
Very nice n important information…..
Thx sir……