संबंधों को मधुर एवं सोहार्दपूर्ण बनाने के नायाब और सरल उपाय

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

मित्रों का एक समूह कॉफ़ी हाउस में गपशप कर राह था, उनमे मन पसंद परिधान (ड्रेस ) एवं उनके रंगों के बारे मे वार्तालाप चल रहा था,एक मित्र बोला भाई मुझे तो आसमानी नीला रंग ही पसंद है क्यों कि यह मन में कूलनेस की फिलिंग देता है, दूसरा दोस्त बोला मुझे तो गुलाबी रँग अच्छा लगता है इसी बीच तीसरा बोला छोडो यारों मुझे न तो नीला रंग पसंद और ना ही गुलाबी किन्तु मुझे तो सिर्फ् सफेद रंग ही भाता है, इस परस्पर वार्तालाप में कोई सहमति नहीं बन पा रही थी, विचार विमर्ष उग्र हो चला एवं हाथा पाई की नोबत आ गई——-सभी अपनी अपनी पसंद को अच्छी बता कर उसे दूसरों पर थोपना चाहते थे |
शांत होकर चिन्तन करें कि क्या केवल आप ही की सोच सही है ? क्या दूसरों की सोच सही नहीं हो सकती है ? सच तो यह है कि हर एक का तर्क/सोच/विचार भी उनके अपने विवेक के अनुसार सही हो सकता है इसीलिये हमें अपनी सोच के साथ साथ दूसरों के विचारों का सम्मान करना ही चाहिए, एवं ऐसे व्यर्थ के वादविवादो से बचना भी चाहिए | हमें यह मानना ही होगा कि हमें हमारें विचारों/सोच/मान्यताओं को अन्य लोगों पर थोपने का हमें कोई अधिकार नहीं हे और ना ही ऐसा करना न्याय संगत है | आपके विचार,तर्क,सोच आपके लिये सही हो सकते हैं तो दूसरी तरफ दूसरों के विचार/मान्यतायें उनके नजरिये से सही हो सकते है |निसंदेह हमारे सबके हित में यही है कि हम दुसरों के विचार/मान्यता का भी सम्मान करें, यही समझ हमारे मजबूत,मधुर, स्नेहपूर्ण सबंधों की आधारशीला बनेगी और हमारे पारस्परिक सम्बधं चट्टान जैसे मजबूत बन जायेगें |किन्तु अगर आप दूसरों की सोच/विचारों/भावनाओं/मान्यताओं का आदर/सम्मान नहीं करेगें तो अवश्यंभावी आपके पारस्परिक संबंधों में कड़वाहट पैदा होगी,आपस में गलतफहमियां उत्पन्न होगीँ,संबंध ख़राब होंगें, आपकी खुशियाँ आपसे दूर हो जायेगी, आप अप्रसन्न, खिन्न और दुखी रहेगें एवं अविश्वास –शक की दिवारें बनती जायेगी ( और ऐसा ही आज समाज के भीतर विभिन्न समुदायों-वर्गों के बीच में हो रहा है),अब निर्णय आप को करना है कि आप प्रसन्न रहना चाहते हैं या अप्रसन्न/खिन्न/दुखी ?
अगर आप दूसरों से अपने संबंधो को मधुर, स्नेहमयी, सोहार्द पूर्ण बनाना चाहते हैं तो दूसरों पर अपने विचार थोपें नहीं वरन उनके विचारों का भी आदर करें( Do not impose your views on ओठेर्स, Let others to live in accordance to their views, faith orthinking,Do not be judgemental ) उन्हें अपने- अपने विचारों/समझ/सोच के साथ अपना जीवन जीने दें, ऐसा नहीं करने या दूसरों पर अपने विचार/मान्यता थोपने की आदत आप के जीवन में तनाव, शंका, इर्ष्या,डाह तो उत्पन्न करेगी ही इसके साथ-साथ आपके मन में दूसरों के बारे में नकारात्मक सोच पैदा कर आपको ही दुखी बनायेगी |
डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—–मेरी डायरी के पन्ने, संतों के प्रव्रचन
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