हजरत, मैं शब्द बेचता हूं !

भंवर मेघवंशी
भंवर मेघवंशी

मैं शब्दों का व्यापारी हूं
लिखकर ,बोलकर ,
कभी कभी चुप रह कर
उन्हें बेचता हूं .
जी हां भाईसाहब ,
मैं शब्दों का कारोबारी
रात दिन लगा रहता हूं
अल्फाजों की तिजारत में
तरह तरह से उन्हें बेचता हूं
उन्हीं से कमाता हूं
उन्हीं की खाता हूं
उन्हीं को ओढ़ता हूं
उन्हीं को बिछाता हूं
शब्द ही देता हूं
शब्द ही पाता हूं
बुदबुदाता हूं शब्दों को ,
शब्द ही गुनगुनाता हूं
शब्दों की छेड़कर तान
शब्द ही गाता हूं.
जी हां मैं वणिक हूं शब्दों का ,
तनिक भी नहीं हिचकिचाता हूं.
जी हां हजरत
मैं शब्दों का ब्यौपारी हूं
शब्द खरीद लेता हूं
फिर उन्हें बेच भी देता हूं .
हां महाशय ,
मैने भी सुना तो है
कि शब्द ही ब्रह्म है
यह भी कि-
शब्दों से ही फैला सारा भ्रम है
यह भी कहती है
आसमानी किताबें
कि शब्द ही था पहले
नूर से भी पहले
ध्वनि और कंपन के रूप में
शब्द ही का था पसारा
शब्द ही है सत्य
शेष तो सिर्फ मिथ्या है
पर मुझे इन बातों से क्या है
दो शब्द लिख लेता हूं
दो बातें कह लेता हूं
दो पैसे कमा लेता हूं..
शब्दों का कारोबार
अच्छा है भाईसाहब
कर लेता हूं बैठे बैठे
चलते चलते और लेटे लेटे
ना दुकां की जरूरत
ना मकां चाहिये
फकत सिर्फ कागज
और कलम चाहिये
जी हां हजरत
शब्दों की तिजारत
ताकयामत चलेगी
कल भी थे शब्द
आज भी है और कल
भी रहेंगे
ऐसा कालातीत बिजनेस
आप भी कीजिये
कुछ अच्छे,कुछ बुरे
कुछ कड़वे,कुछ मीठे
कुछ हल्के फुल्के
कुछ साफ,कुछ धुंधले
जो पसंद आये
शब्द ले लिजिये
मैं तो विशुद्ध व्यापारी हूं
निष्ठुर कारोबारी हूं
भवानी दा की तरह
गीत बना कर
बेचने की फुरसत किसे है
जब शब्द ही बिक रहे हो
गीत रचने की जरूरत किसे है
भविष्य बहुत उज्जवल लगता है
आज तो शब्द बिक रहे है
कल अक्षर बिकेंगे
लिखने वाले भी अक्सर बिकेंगे
उस दिन की आमद की खुशी में
तब तक शब्दों की
चौराहों पर लगाकर ढेरियां
निरन्तर बेच रहा हूं
जी हां भाईसाहब
मैं शब्दों का व्यापारी हूं
शब्द बेचता हूं
कभी बोलकर
कभी लिखकर
कभी मौन बेचता हूं
जी हां हजरत
मैं शब्द बेचता हूं
  -भँवर मेघवंशी
( कल एक जिज्ञासु ने पूछा कि -आप काम धाम क्या करते हो,उसको दिये गये जवाब ने कविता का रूप धर लिया,झेलिये ! )

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