आर.एस.एस. की बात सही है कि सम्पन्न वर्ग को आरक्षण का लाभ छोडना चाहिए ताकि जरूरतमंद को इसका लाभ मिल सके। लेकिन क्या इस शुभ काम की शुरुआत अपने घर से करके मिसाल कायम करने की संघ हिम्मत दिखा सकता है? संघ और उससे जुडे भाजपा और अन्य सगठनों में आरक्षित वर्ग के हजारों ऐसे लोग होंगे जो आरक्षण का लाभ लेते हुए सम्पन्न हो चुके हैं। क्या संघ अपने ऐसे स्वयं सेवकों को कह सकता है कि जिसके परिवार ने आरक्षण का लाभ एक या दो बार ले लिया है, वह अब इसका लाभ नहीं ले। क्या भाजपा ऐसा कर सकती है कि एक बार आरक्षित कोटे से एमपी ,एमएलए का टिकट ले चुके नेता को दूसरी बार टिकट नहीं मिलेगा,ना ही उसके परिवार से किसी का दावा मंजूर होगा। अगर ये हिम्मत नहीं हैं तो बार बार संघ के नेता क्यों इस मुद्दे को हवा देते हैं।
अब ये तो जाहिर ही है कि कभी पिछडो व समाज के दबे कुचले लोगों को बराबरी पर लाने के लिए की गई आरक्षण व्यवस्था अब समाज और देश के लिए नासूर बनती जा रही है। इसका लाभ भले ही वास्तविक हकदारों को नहीं मिल रहा है,लेकिन इसका फायदा उठाकर कई लोग सम्पन्न जरूर हो गए हैं। राजनीति मे तो इसके चलते परिवारवाद फल फूल रहा है, तो प्रशासनिक ठाठ बाठ का आनंद भी कुछ जाति विशेष के लोग ले रहे हैं। ऐसे मे आरक्षण का सबसे बेहतर आधार तो आर्थिक हो सकता है।क्योंकि वोटों की राजनीति के चलते आरक्षण खत्म करना तो असंभव है, चाहे कोई पार्टी दो तिहाई बहुमत के साथ ही सत्ता मे क्यों ना जाए। ऐसे मे संघ की सम्पन्न वर्ग से आरक्षण छोडने की अपील को इस दिशा मे कदम मान सकते हैं। लेकिन क्या संघ घर से इसकी शुरुआत करेगा। हो सकता है उसका त्याग देख देश मे सकारात्मक माहौल बने। वरना तो वही बात होगी पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
ओम माथुर, अजमेर. 9351415379