मूल: अनूप भार्गव
क्या तुम ?
मैं और तुम
व्रत्त की परिधि के
अलग अलग कोनों में
बैठे दो बिन्दु हैं,
मैनें तो
अपनें हिस्से का
अर्धव्यास पूरा कर लिया,
क्या तुम
मुझसे मिलने के लिये
केन्द्र पर आओगी ?
2
समाधान
अंको के गणित
और तर्क की
ज्यामिती के दायरे
में कैद ज़िन्दगी
एक कठिन समीकरण
बन गई थी ।
तुम चुपके से आईं
और मेरे कान में
प्यार से
बस इतना ही कहा
‘सुनो’ …..
मैं मुस्कुरा दिया
और अचानक,
ज़िन्दगी के सभी कठिन प्रश्न
बड़े आसान से लगने लगे ।
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
छा तूँ ?
माँ ऐं तूँ
चकर जे संधे जे
अलग-अलग कुंडुनु में
वेठल बिन्दू आहियूँ,
मूँ त
पहिंजे हिस्से जो
अधु कतरु पूरो करे छड़ियो,
छा तूँ
मूँ साणु मिलण जे लाइ
मरकज़ ते ईंदीअं?
२
समाधानु
अदद जे गणित
ऐं तर्क जी
जामेटरीअ जे दायरे
में कैद ज़िन्दगी
हिकु डुखियो मसवात/ हिक जहिड़ाई
बणजी पई हुई।
तूँ माठ में आईंअ
ऐं मुहिंजे कन में
प्यार सां
बस एतरोई चयुई
‘बुधो’ …..
मूँ मुरकी डिनो
ऐं ओचतो,
ज़िन्दगीअ जा सभ डुख्या सवाल
तमाम सवला लगण लगा !
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