शैक्षणिक संस्थानों को एक विशेष विचारधारा से जोड़ने का मंसूबा

aamir ansari-मो. आमिर अंसारी-
मैं परेशां नहीं हूं अपनी ग़म भरी दुनिया से
मैं परेशां हूं, देखकर तेरी ख़ामोशी
लगातार जिस तरह से शैक्षणिक संस्थानों को एक विशेष विचारधारा से जोड़ने का मंसूबा आए दिन हुकूमत-ए-हिन्द की कारकरदगी से ज़ाहिर हो रहा है। उसने मुल्क के एक बड़े तबक़े में बेचैनी पैदा कर दी है पहले हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमूला की मौत कई अनसुलझे सवाल बन कर मुल्क के शिक्षा जगत को विचलित कर रही थी फिर उमर खालिद और कन्हैया कुमार के ज़रिए जे.एन.यू. पर निशाना साधा जाता है।
अभी हैदराबाद और जे.एन.यू का मामला पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि मोदी सरकार का वह ख़ौ$फ नाक चेहरा दिखाई देता है जो मोदी जी के चेहरे पर से उस मखौल को उतार फेंकता है जो चेहरा मुसलमानों की तालीम के ताल्लुक़ से यह कहते हुए अपने चुनावी अभियान में दिखाई दिया था कि ‘मैं मुसलमानों के एक हाथ में कु़रआन तो दूसरे हाथ में लैपटॉप देखना चाहता हूंÓ। मोदी जी का यह जुमला भी वैसा ही एक चुनावी जुमला बनकर रह गया जैसा कि काले धन को वापिस लाने का वादा था, काला धन तो वापिस नहीं आया लेकिन माल्या के रूप में देश का गाढ़ा धन ज़रूर मुल्क के बाहर चला गया! बिलकुल इसी प्रकार तालीम की आस में अपनी डबडबाई हुई सवालिया निगाहों से हुकूमतों की जानिब देखने वाले वह मुसलमान जिनकी तालीमी हालत को जस्टिस सच्चर ने दलित भाइयों से भी बदतर बताया है उनके मुरझाए हुए चेहरों पर उस वक़्त तबस्सुम की लकीर दिखाई देने लगी जब मोदी जी ने सबका साथ सबका विकास का नारा बुलंद करते हुए उन हाथों में लैपटॉप देने का सपना दिखाया जिन हाथों का मुक़द्दर टायर का पंचर सुधारना या मोटर कार का इंजन ठीक करना बन गया था, लेकिन हुकूमत में आते ही मोदी सरकार ने अपनी नफ़रत का शिकार मुस्लिम शैक्षणिक संस्थानों को ही बनाना शुरू कर दिया!
जमहूरियत के सबसे बड़े मंदिर यानी संसद भवन में बैठे कुछ सांसदों ने यह कहते हुए मुसलमानों के उस हाथ को ही काटने की कोशिश की जिस हाथ में मोदी जी क़ुरआन देखना चाहते थे कि ‘मदरसे आतंक का अड्डा हैंÓ! और मोदी हुकूमत ने स्वयं अपने आचरण से उस हाथ से भी किताबें छीनने की निरंतर कोशिशें शुरू कर दी जिस हाथ में मोदी जी ने अपने चुनावी अभियान के समय लैपटॉप देने की बात कही थी।
मोदी हुकूमत का मुस्लिम तालीम के तईं क्या नज़रिया है यह उस वक़्त ज़माने की नज़रों के सामने अयां हो गया जब उप्र के तात्कालीन गवर्नर अज़ीज़ कु़रैशी ने मो. अली जौहर यूनिवर्सिटी के बिल पर दस्तख़त किए तो मुल्क के मुसलमानों को यह अहसास हुआ कि जो काम कांग्रेस हुकूमत में गवर्नर नहीं कर सके थे वह तारीख़ी काम नई नवेली मोदी हुकूमत के वजूद में आते ही चंद दिनों में ही मो. अली जौहर यूनिवर्सिटी के बिल पर दस्तख़त की शक्ल में हो गया! मुल्क के सेक्युलर तबके को लगा कि राष्ट्रवाद की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली जमात को शायद यह समझ आ गया कि अगर भारत माता का एक अहम अंग (मुसलमान) यदि तालीम से दूर रहेंगे तो भारत माता की ख़ूबसूरती अधूरी दिखाई देगी। लेकिन यह अहसास उस वक़्त चकनाचूर हो गया जब मो. अली जौहर यूनिवर्सिटी के बिल पर दस्तख़त करने वाले उस गवर्नर अज़ीज़ क़ुरैशी को इस दस्तख़त के 48 घंटों के भीतर अपने पद से हाथ धोना पड़ा जिस गवर्नर के पास इस दस्तख़त से पहले दो-दो राज्यों का प्रभार मिला हुआ था।
वर्तमान मोदी हुकूमत का यह वह पहला क़दम था जो चीख़-चीख़ कर यह ऐलान कर रहा था कि ऐ ग़यूर नस्लों के ग़ैरतमंद इंसानों मुत्तहिद हो जाओ और तालीम को दौर-ए-हाज़िर के सर सैय्यद यानी मो. आज़म खां की तरह तहरीक बना डालो लेकिन मो. अली जौहर यूनिवर्सिटी के बिल पर दस्तख़त करने की सज़ा की शक्ल में जो कुछ इस तात्कालीन गवर्नर के साथ घटित हुआ उस पर हमारे रहनुमा, हमारे अकाबरीन, हमारे रऊसा, हमारे हमदर्द, हमारे सहा$फी और हम खुद ख़ामोश रहे और हमारी इसी ख़ामोशी को अपना हथियार बनाया मोदी हुकूमत ने और इस हथियार का इस्तेमाल हुआ मुसलमानों के सबसे बड़े तालीमी, तरबियती और तहज़ीबी असासे यानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ख़िलाफ़ । हमारी ख़ामोशी, हमारी बेहिर्सी और हमारी तालीम से बेमुरव्वती का ही नतीजा है कि कल वह लोग जो एक ख़ास ज़हनियत से मंसूब हैं उनके चुनावी मेनिफेस्टो तक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार के तहफ़्फूज़ की बात होती थी।
सोचो, ग़ौर ओ $िफक्र करो और दौरे माज़ी का जायज़ा करते हुए अपने हाल के हालात पर नज़र डालो तो समझ आएगा कि 80 के दशक में मो.आज़म खां साहब जैसे $िफक्रमंद लोगों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की बहाली के लिए अपनी जवानी को जेलों की सलाखों के अंदर कै़द कर दिया था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की बहाली की लड़ाई एक पत्थर दिल हुकूमत से थी और आज़म खां मुसलसल उस वक़्त के पत्थर दिल हुकमरानों से टकराते-टकराते खुद पत्थरों की दीवारों में कै़द हो गए तब जाकर 1981 में पत्थर दिल हुकूमत की प्रधानमंत्री का दिल पसीजा और अटल-आडवाणी की भाजपा के तात्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राम जेठमलानी तक इस बिल के सपोर्ट में खड़े हो गए थे।
जब इलाहबाद हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के जज ने उन के अक़लियती किरदार को मसक करने का फैसला सुनाया तो यूपीए हुकूमत ने इसके ख़िला$फ सर्वोच्च न्यायलय में हलफनामा पेश किया लेकिन वह मोदी जी जो एक हाथ में क़ुरआन और एक हाथ में लैपटॉप देने की बात करते थे हुकूमत में आने के बाद हमारी ख़ामोशी से इतने उत्साहित हुए कि उनकी सरकार ने उनके संदर्भ में दिए गए हलफनामे को वापिस ले लिया इसके बाद भी मुल्क में खामोशी छाई रही लेकिन अगर यह ख़ामोशी अब भी न टूटी तो आने वाला कल मुल्क के इन ख़ामोश लोगों के लिए आंसूओं का ऐसा सैलाब लेकर आएगा जिसके तसव्वुर से भी रूह कांप उठती है।
लेकिन शुक्र है उस रब्बे ज़ुल जलाल का जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है यह ख़ामोशी बतारीख 28 अप्रैल 2016 को संसद के एक ऐसे समाजवादी विचारक के ज़रिए टूटी जिन्हें दौर-ए-हाज़िर में सानी ए सर सैय्यद और कमज़ोर लोगों की मज़बूत आवाज़ मो.आज़म खां साहब के सियासी शागिर्द की शक्ल में जाना पहचाना जाता है यानी मेरी मुराद मुस्लिम बुद्धिजीवी चौधरी मुनव्वर सलीम साहब से है। गुज़रे हुए हाल के दिनों में मो. आज़म खां साहब के इस सियासी शागिर्द ने अपने उस्ताद के बताए हुए रास्ते पर चलने का बबांग-ए-दोहल ऐलान किया है यानी जब 80 के दशक में मो.आज़म खां साहब के पास खुद का हौसला, मुल्क ओ मिल्लत के लिए फिक्रमंद ज़हन, सर सैय्यद अहमद खां के अधूरे ख्वाब को पूरे करने का अज़्म और तालीम को तहरीक बनाने का अलम हाथ में था और इस तहरीक का मक़सद 22 दिसंबर 1981 के नए सूरज के नमूदार होते-होते पूरा हो गया। लेकिन आज जब मुल्क एक नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है और एक बार फिर अलीगढ़ को उसके अक़लियती किरदार के लिए जिद्दोजहद की ज़रुरत है ठीक उसी वक़्त जो मशाल चौधरी मुनव्वर सलीम साहब ने मो.आज़म खां साहब की क़यादत में रोशन की है इंशा अल्लाह वह अपने मक़सद में ज़रूर कामयाब होंगे चूंकि कल जब उनकी तहरीक कामयाब हुई थी तब मुल्क में कोई मुस्लिम नेता ऐसा नहीं था जो मो.आज़म खां साहब के क़द को छू भी सकता हो, आज़म खां साहब की जिद्दोजहद से वह कामयाब हो गए थे लेकिन आज जब मुनव्वर सलीम साहब ने तक़रीबन 40 साल बाद फिर इस तहरीक का आग़ाज़ किया है तो इंशा अल्लाह इसका अंजाम भी खुशगवार होगा चूंकि आज हमारे पास मो.आज़म खां साहब जैसा मर्द-ए-मुजाहिद हमारी रहबरी के लिए मौजूद है।
दिनांक 28 अप्रैल 2016 को संसद में मो.आज़म खां साहब के सियासी शागिर्द ने उस वक़्त अपनी आवाज़ उनके हक़ में यह कहते हुए बुलंद की है कि उनका मामला कल भी संसद के फ्लोर पर हल हुआ था तो आज भी इस मसले का हल संसद की चारदीवारी के अंदर होना चाहिए! आज़म खां साहब के इस सियासी शागिर्द ने उन का मामला इस अंदाज़ में संसद में रखा कि नेता विरोधी दल गुलाम नबी आज़ाद सहित मुख़्तलि$फ सियासी जमातों के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट जिनमें सर ए फेहरिस्त कांग्रेस के मोतीलाल बोहरा, के रहमान खान, प्रमोद तिवारी, पी.एल.पुनिया तो समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल, लेफ्ट नेता डी. राजा, जे.डी.यू. नेता के.सी.त्यागी और अली अनवर अंसारी सहित एनडीए गठबंधन के कश्मीर से पीडीपी सांसद मीर मो. $फैयाज़ सहित भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तक ने समर्थन में खड़े हो कर कहा कि मुझे किसी अक़लियती किरदार की तालीमी दरसगाह से कोई आपत्ति नहीं है यह उसका कांस्टीट्यूशनल इख्तियार है।

मुनव्वर सलीम साहब की यह तारीख़ी तक़रीर मैं अपने पाठकों को लफ्ज़ ब लफ्ज़ छाप कर पढ़ाना चाहता हूं!
यह है वह तक़रीर

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम
चश्मे सैयद निगरां है के फिर उठे शायद
कोई दीवाना अलीगढ़़ के बयाबानों से

उपसभापति मोहदय मैं एक ऐसे संस्थान का दर्द लेकर खड़ा हुआ हूं जो हिन्दुस्तान की एक तारीख भी है और हिन्दुस्तान की तरबियत का एक बेहतरीन केन्द्र भी है। मेरी मुराद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से है। उपसभापति जी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का ख्वाब मरहूम सर सैयद ने देखा था लेकिन उसको वह पूरा नहीं कर सके। १९२० में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक बिल के जरिए ब्रिटिश पार्लियामेंट ने बनाई। उस वक्त हिन्दुस्तान के मुसलमानों से ३० लाख रूपये और ५ एकड़ जमीन की मांग की गई थी, जबकि हिन्दुस्तानी मुसलमानों ने इक_ïा करके ५ सौ एकड़ जमीन और 37 लाख रूपए दिए और इस इदारे को शुरू कर दिया गया। इस इदारे ने बहुत सारे नायाब हीरे पैदा किए कुछ लोगों ने इसे मजहब के आईने में देखा। उपसभापति महोदय मैं आप से कहना चाहता हूं और आप के जरिए सरकार से कहना चाहता हूं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वह इदारा है जहां अगर ईद के दिन काली शेरवानियों में स्टूडेंट दिखाई देते हैं तो ईदे गुलाबी यानी होली के दिन रंग में डूबे लोग भी दिखाई देते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वह इदारा है जहां, जो पहले ग्रेजूएशन करने वाले छात्र थे वह राजा महेंद्र सिंह थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वह इदारा है जहां आज भी 50 फीसद से ज्यादा मेडिकल कॉलेज में बहुसंख्यक समाज के लोग पढ़ते हैं, अगर इसके अल्पसंख्यक मान्यता को समाप्त करने की कोशिश की जाए तो यह दुर्भाग्यशाली होगा। माननीय उपसभापति जी १९६५ में एक दुर्भागयशाली घटना हुई थी उसके बाद अलीगढ़ तहरीक के नाम से एक तहरीक चली जिसमें हिन्दुस्तान शामिल हुआ और उस तहरीक के सबसे मजबूत और कद्दावर नेता का नाम मो. आजम खां था। उन्होंने लंबी जेल काटी और उसके बाद जय प्रकाश के नेतृत्व में एक नए सूरज का उदय हुआ और उस वक्त के बहुत सारे लोग इस सदन में बैठे हैं। आदर्णीय सुब्रमण्यम स्वामी जी जैसे लोग, जिन्होंने अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि हम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करेंगे लेकिन 1981 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे बहाल किया। इसमें एक लेकोना था उस लेकोना में अलीगढ़ की तहरीक के सारे लोगों को एतराज रहा और वही वजह बनी कि इसके अंदर अदालत का हस्तक्षेप हुआ। मैं इस सदन से मांग करता हूं कि अगर आप देश को शिक्षित बनाना चाहते हो, देश के अनपढ़ लोगों को पढ़ाना चाहते हो, अगर उन लोगों को पढ़ाना चाहते हो जिनके लिए जस्टिस सच्चर ने कहा कि इनकी तालीमी हालत दलितों से भी बदतर है तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अदालती विवादों से बाहर निकाल कर इस संसद के फ्लोर पर एक नई जिंदगी दो और इसके अल्पसंख्यक दर्जे की हिफाजत करो चुंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का जंगे आजादी में ऐसा तारीखी रोल रहा है जब गांधी जी ने कहा कि अंग्रेजी कपड़े जलाओ तो एएमयू के छात्रों ने अंग्रेजी कपड़ों का पहाड़ बना दिया था और भारत की आजादी के आंदोलन में साथ दिया था। मैं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आप सब से निवेदन करता हूं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को अदालत की जगह संसद के फ्लोर पर तय किया जाए।
मैं अपने क़लम इस सच पर रोकना चाहता हूं कि अगर अब भी हम ख़ामोश रहे तो मुस्तक़बिल का तो अल्लाह ही मालिक है लेकिन हमारा हाल भी बदहाल हो जाएगा और इसके ज़िम्मेदार हम सब होंगे! मैं अपनी बात एक शायर के इन चार मिसरों पर ख़त्म करता हूं कि….
पहले तालीम से मोड़ दिए जाओगे !
फिर किसी जुर्म से जोड़ दिए जाओगे !!
हाथों को ज़ंजीर सा बांध लो वरना !
धागों की तरह तोड़ दिए जाओगे !!

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