निखर निखर कर आई है।
रात रात भर बरसी बैरन,
फिर भी प्यास जगाई है।।
भीगे फूल, पात, उपवन हैं,
भीग रही धरती प्यारी।
भीगे भीगे नयन हमारे,
भीग गई दुनिया सारी।।
टपटप टपटप गिरती बूंदें,
गीत विरह की गाती हैं।
कलकल कलकल की धुन छेड़े,
नदिया बहती जाती है।।
बरखा ने आकर के सब में,
मधुर प्रेम बरसाया है।
मुर्क्षित बंधन थे इस जग के,
नव संचार जगाया है।।
जल, हवा और इस माटी का,
कितना सुंदर रिश्ता है।
इक दूजे के बिना अधूरे,
ऐसा हमको दिखता है।।
पंचतत्व से हम हैं जग में,
बिन इनके कैसा जीवन।
स्वस्थ रहेगा तन-मन तब ही,
जब बच जाये वन उपवन।।
©आशा गुप्ता ‘आशु’, पोर्ट ब्लेयर, अंडमान