बाबूलाल नागा
यह कहानियां हैं उन बालिकाओं की जो बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ आ खड़ी हुई हैं। बचपन में हुई शादी को ये ठुकरा रही है। ससुराल जाने की बजाय अब पढ़ना चाहती है। सामाजिक बंधनों को तोड़ आगे निकलना चाहती है। ये खुद से बस एक वायदा कर रही हैं कि जो हमारे साथ हुआ वो दूसरी बेटियों के साथ नहीं होने देंगे। इन्होंने अपना बाल विवाह तो रुकवाया ही बल्कि अब अपने-अपने क्षेत्रों मंे किशोरी बालिका मंचों का गठन कर बाल विवाह की कुप्रथा को लेकर लोगों को जागरूक कर रही हैं। संकल्प ले रही है कि हमारे इलाके में एक भी बाल विवाह नहीं होने देंगे। आइए, हम मिलते हैं ऐसी ही कुछ बहादुर बालिकाओं से।
17 साल की रामगणी जाट को तो अभी तक भी अपने बाल विवाह का दंश झेलना पड़ रहा है। रामगणी भीलवाड़ा जिले के सहाड़ा ब्लॉक के गोवलिया ग्राम पंचायत के खसूरिया गांव की रहने वाली है। वह जब 13 साल की थी तब अपनी 6 बहिनों के साथ उसकी भी शादी कर दी। उसकी एक बहिन तो मात्र 2 साल की थी। ससुराल वाले आते और प्यार से समझा बुझाकर उसे ले जाते। तीन साल तक यूंहि चलता रहा। होश संभाला तो इस बात का अहसास हुआ। अब वह ससुराल नहीं जाना चाहती बल्कि पढ़ लिखकर पुलिस अफसर बनना चाहती है। भीलवाड़ा की आमली ग्राम पंचायत की 20 वर्षीय रिंकू प्रजापत की शादी दस साल की उम्र में उसके बडे़ भाई के साथ आटे-साटे में कर दी। जब होश संभाला तो भाई को लड़की पसंद नहीं आई और उसने यह शादी तोड़ दी। इसका परिणाम रिंकू को भी भुगतना पड़ा और उसकी भी शादी टूट गई। अब उसके घरवाले रिंकू को नाते भेजने पर तुले हैं। पर वह इनसब को पीछे छोड़ आगे बढ़कर पढ़ना चाहती है। सारेला गांव की देऊ रैगर की शादी 6 साल की उम्र में कर दी। थोड़ी बड़ी हुई तो ससुराल वाले उसे लेने आ गए पर वे उसने ससुराल जाने का विरोध किया। उसने अपने घरवालों को समझाया पर वो नहीं मानें। देऊ को ससुराल जाना ही पड़ा। वहां गई तो सास ने फरमान जारी कर दिया। कह दिया अब पढ़ाई करना छोड़ दो और घर के काम संभालों। रिंकू ने ससुराल को छोड़ अपनी पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया।
बाल विवाह के खिलाफ अन्य क्षेत्रों की बालिकाएं भी आगे आई हैं। आदिवासी क्षेत्रों की किशोरियों ने भी बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। आबू रोड़ के मोरथला गांव की 22 साल की पवनी गरासिया की शादी 17 साल की उम्र में हो गई थी। ससुराल में उसका पति उसे परेशान करता। पवनी ने इस शोषण से मुक्त होने का सोचा और ससुराल को छोड़ दिया। वह अब अपने परिवारवाले के साथ रहकर 7वीं से आगे पढ़ाई करना चाहती हैं। आदिवासी इलाकों में बाल विवाह का प्रचलन काफी है। बेटियां 12-13 साल की होती नहीं है कि उनकी शादी कर दी जाती है। इन इलाकों की स्कूल में पढ़ने वाली ज्यादातर किशोरियां शादीशुदा होती है। लेकिन अब इस क्षेत्र की किशोरियां बाल विवाह के दुष्प्रभावों की जानकारी अपने समाज के लोगों को दे रही है। (लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)