ईमान का इंतकाल

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
महेन्द्र सिंह भेरूंदा
कल मेने विभिन्न चैनलो पर होने वाली अलग अलग विषय पर बहस को सुना और पाया कि ना तो ईमानदारी प्रश्न में थी और ना ही जवाब में प्रश्नावली भी किसी दबाव में या चैनल के फायेदे में बनी थी तो जवाब भी सभी पार्टी प्रतिनिधि उस विषय से हट कर विषय की लाश को अलग अलग तरह से नोंच कर अपने वोट प्रतिशत को बढ़ा रहे थे ।
एक चैनल पर गुजरात की घटना पर बहस हो रही थी उस में भी भाग लेने वाले पिछड़ी जाति नेता भी केवल इस बहस से राजनीतिक हलको में अपने वोट बैंक के माध्यम से दबाव बनाने का काम कर रहे थे ना की पिछड़े के लिए शिक्षा और कल्याण पर उनका ध्यान था और दूसरी तरफ भाजपा व कांग्रेस के प्रतिनिधियों का ध्यान केवल पिछड़े के वोट को आकर्षित करने का और एक दूसरे पर दोषारोपण पर ही था ।
एक चैनल पर कश्मीर के मामले पर बहस हो रही थी उसका का भी यही हाल था ।
ऐसा नही है क़ी ये लोग हकीकत से वाकिफ नही है मगर इन लोगो ने अपने वैचारिक ईमान को खो दिया है और इन लोग ने राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर केवल राष्ट्रवादी होने का ढोंग कर रहे है इस बीमारी से संसद के माननीय सांसद भी अछूते नही है कश्मीर के मामले में होने वाली बहस इस बात का प्रमाण है बहस करने वाले और जवाब देने वाले हर नेता के शब्द मतलब के किचड़ से भरे हुए थे घटना की वास्तविक सच्चाई से सब परे थे इससे जाहिर होता है की देश की गम्भीर से गम्भीर समस्या पर हमारे देश के राजनीतिज्ञ गम्भीर नही है तो समस्या का समाधान भी नही है क्यों की हमारे ईमान का इंतकाल हो गया है ।

महेंद्र सिंह भेरुन्दा
9983052802

error: Content is protected !!