नेताजी नींद में

Ras Bihari Gaur (Coordinator)नेताजी नींद में पाये गए। बड़ा हल्ला हुआ, शोर हुआ कि नेताजी नींद में थे। शोर भी दोतरफा हुआ। एक नींद से पहले, दूसरा नींद के बाद। दोनों ही स्थितियों में नींद के सामने शोर बेवजह का सन्नाटा साबित हुआ। होना भी था। पहले वाला यानि कि नींद के दौरान वाला शोर तो खुद अपनी हरकतों पे शर्मिंदा है कि एक अदनी सी नींद में खलल नहीं डाल सका, दूसरे वाला इस लिहाज से बिलकुल बेमानी है कि नेता की नींद भी भला कोई शोर मचाने की वजह हो सकती है ,ये तो ठीक वैसे ही है जैसे कोई अपनी पत्नी के साथ हनीमून बनाये और आप जबरदस्ती उसे जबरदस्ती करने का दोषी मान ले।
चूँकि नेताजी की नींद पर शोर मच चूका है, तो मच चूका है। उस शोर से भले ही आदरणीय की नींद ना टूटे पर कई अनुयायी सो नहीं पा रहे हैं। वे बता रहे हैं कि नेताजी की नींद के मायने कितने व्यापक है। उनकी पलको, पुतलियों और सफेदी पर देश का भार होने के बावजूद आँख के दरवाजे पे हजारों सपने ऐसे दस्तक दे रहे हैं मानो उन्हें कोई सरकारी टेंडर चाहिए। सपनों की इस भीड़ को हैंडल करने के लिये थोड़ी देर आँखे के दरवाजो को बंद करने को हिंदी में मूंदना कहते हैं। तो इसमें हिंदी का कसूर है, नेताजी का नहीं। आदर्श राजनेता की मुंदी आँखों को नींद समझना खुद के अंधे होने का पता बताना है।
नेताजी की नींद राष्ट्रीय धरोहर है। लोक का कल्याण है। अतः उसमे लोकरंजन ढूँढते हुए ये प्रश्न बेमानी है कि नेताजी कौन से दल के हैं। वे किसी एक दल के नहीं है। वे हर दल के हैं,। अर्थातकि दलदल के हैं।
दलदल में रहकर उन्होंने बाते निकाली, रातें निकाली, सौगाते निकाली, कोई हल्ला नहीं हुआ, शोर नहीं मचा। पहली बार थोड़ी सी नींद क्या निकाल ली, दूसरे दलदलियों ने हंगामा बरपा दिया। गोया नींद ना हुई ,नगदी हो गई। जिसके निकालने पर नेता जी को देश निकाला देने की तैयारी हो गई। ये कैमरे और टी वी वाले जागते हुए नेता तो कभी दिखा नहीं पाये, नींद निकालने वालो को प्राइम टाइम स्लॉट दे रहे हैं। अब बंदा जीत कर गया है, संसद में नहीं तो क्या जंतर मंतर पर नींद निकालेगा। पिछली सरकार तो नींद-नींद में ही चली चल बसी। इस सरकार ने पिछली से सबक लेते हुए जनता में नींद की गोलियां बाँट दी ताकि खुद आराम से नींद ले सके। लेकिन ये मिडिया ,कानून,कलम वाले वक्त- बेवक्त नींद से जागते ही नेताजी की नींद में खलल डालते हैं। अब समय आ गया है कि राजनीति को नेता और नींद के हित में कड़े कदम उठाने चाहिये। एक सख्त कानून बनाना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे सांसद, विधायकों के वेतन भत्तों की वृद्धि को लेकर सारे दल अपने निजी राग-द्वेष तजकर आवाज में आवाज मिलाते हैं, इस बार नींद के विरुद्ध एक बिल संसद में ध्वनिमत से पारित किया जाए कि नेता को नींद निकालने के लिए आँखे बंद करने की विशेष छूट होगी। पैसठ वर्षो से खुली आँखों की नींद पर जश्न मनाने वाली जनता साठ सैकंड की झपकी पर एजराज कर रही है।हम भी क्या करे हम वो लोग है जो नौ हजार करोड़ लेकर भागने वाले को हवा में रखते हैं और नौ सो रूपये के घोटाले वाले को हवालात में।

रास बिहारी गौड़
rasbiharigaur@gmail.com

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