पत्थर की खिचड़ी !

sohanpal singh
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गावँ के बाहरी छोर पर सड़क के किनारे एक वृद्ध स्त्री एक झोपडी में रहती थी उसके परिवार में उसके अलावा कोई और नहीं था । शरद रितु में एक दिन एक अधेड़ मुसाफिर ने साँझ के समय झोपडी पर पहुचं कर आवाज लगाई कोई है , वृद्धा बाहर आई और देखा एक अधेड़ सा व्यक्ति द्वार पर खड़ा है उसके हाथ समान के नाम पर एक झोला था । उसने वृद्धा से कहा माँ बहुत दूर से आ रहा हूँ मेरा गावँ अभी बहुत दूर है रात भी हो गई है , रात में यहाँ रुकने की इजाजत मिल जाय तो आपकी कृपा होगी, मैं भूखा भी हूँ ! वृद्धा ने कहा ठीक है तुम रात में रुक सकते हो पर मेरे पास खाने को कुछ नहीं है तुम्हे ऐसे ही रात गुजारनी होगी ? उस व्यक्ति ने कहा ठीक है माई , और वह झोपडी के अंदर आ गया , अंदर अँधेरा था उस व्यक्ति ने कहा , माई दिया तो जला दो , बुढ़िया ने बड़े अनमने मन से एक दिया जलाया और अपने बिस्तर पर लेट गई, लेकिन उस व्यक्ति को तो भूख लगी थी नींद कैसे आती, उसने बुढ़िया से कहा माई मैं आग जला लूँ , बुढ़िया ने पूंछा कि आग जला कर क्या करोगे , उस व्यक्ति ने कहा माई भूख लगी है खिचड़ी बनाऊंगा , लेकिन खिचड़ी किस चीज की बनाओगे , व्यक्ति बोला , पत्थर की , बुढ़िया ने कहा, ठीक है, उसने कोने में रखी लकड़ियों से चूल्हा जलाया और उस पर एक पतीली चढ़ा दी फिर उसमे पानी डाला और अपने झोले से कुछ छोटे छोटे गोल पत्थर निकाले और पतीली में डाल दिए । अबतो बुढ़िया को भी कुछ कुछ आश्चर्य हुआ की पत्थर की खिचड़ी कैसे बनेगी , वह भी उठ कर बैठ गई, ! उस व्यक्ति ने कहा माई थोडा नमक हो तो देदो फीकी खिचड़ी कैसे खाऊंगा ? बुढ़िया ने नमक दे के साथ मिर्च भी दे दी । कुछ देर बाद वह व्यक्ति बोला खिचड़ी तो तैयार होनेको है कुछ चावल होते तो और बढ़िया बनती खिचड़ी । अबतो बुढ़िया को भी कुछ कौतुहल हुआ और उसको भी भूख लगने लगी । बुढ़िया ने एक बर्तन से कुछ चावल निकालकर दिए फिर स्वयं ही बोली ले बेटा कुछ दाल भी डाल दे इसमें । अब तो कुछ देर बाद वास्तव में पतीली से खुसबू आने लगी और बुढ़िया को भी भूख सताने लगी । उसी समय उस व्यक्ति ने कहा कि माई अगर इसमें तड़का लग जाता तो मजा आ जाता । बुढ़िया ने तुरंत ही तड़के (छौंक) सामान निकाला और स्वयं ही चूल्हे के पास बैठ कर खिचड़ी में तड़का लगाया । फिर दोनों ने मिल कर खिचड़ी खाई लेकिन यह क्या बुढ़िया आश्चर्य से बोली बेटा ये पत्थर तो गले नहीं ? वह व्यक्ति बोला माँ पत्थर कभी नहीं गलते । खिचड़ी तो दाल चावल की ही बनी है! पत्थर का तो इसमें सहयोग है । उस व्यक्ति ने सारे पत्थर एकत्र किये और उन्हें धोकर अपने झोले में रख लिए ? और बुढ़िया से बोला , माँ सबकुछ तुम्हारे पास था लेकिन तू? भूखे ही सोना चाहती थी ?
(भारतीय रिजर्व बैंक के सेवा निवृत होने वाले गवर्नर श्री रघुराम जी राजन जी को समर्पित)

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