कैसी आज़ादी-कौन सी देश भक्ति

एक दिन का दिखावा है-हर रोज़ सियापा है.. ANY WAYS — वन्दे मातरम्.. इंक़लाब जिंदाबाद, भारत माता की जय… मेरा भारत महान, झंडा उंचा रहे हमारा..
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अमित टंडन
अमित टंडन
मैं तो किसी कांग्रेस, बीजेपी को नहीं जानता… मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि जो वादे किये वो वफ़ा हो जाएँ…. मैंने कार्ल मार्क्स को पढ़ा है, इमाइल दुर्खीम को पढ़ा है, मेक्स वेबर को पढ़ा है.. यही सीखा है कि आम आदमी को किसी राजनीति से लेना देना नहीं… राजीनत धापे हुए लोगों का काम है… आम आदमी तो अपनी रसोई का चूल्हा रोज़ जलते देखना चाहता है… उसके बच्चे रात को भूखे ना सोयें.. प्रसंगवश बात दूँ कि मैं खुद बीजेपी समर्थक हूँ और उसे ही वोट देता आया हूँ…और फिर मैं अंध भक्ति में विश्वास नहीं करता.. सिर्फ इसलिए मैं किसी की तारीफ़ नहीं कर सकता कि में उसका समर्थक हूँ…. हाँ मैं बीजेपी का समर्थक हूँ मगर कट्टर नहीं… अगर समर्थक होने के नाते उन्हें वोट देना मेरा फ़र्ज़ है.. अगर उनकी जीत की दुआ करना मेरा फ़र्ज़ है.. अगर उनकी जीत की ख़ुशी मनाना मेरा जज़बा है,, अगर उनके अच्छे कामों की तारीफ करना मुझ पे क़र्ज़ है तो उनकी कमियों पे आलोचना करना भी मेरा अधिकार है… लम्बी चौड़ी मासिक कमाई वालों को फर्क नहीं पड़ता कि दस-पन्द्रह रूपये किलो वाला टमाटर सौ रूपये किलो हो गया.. वो फिर भी खाते हैं… मगर मुझ जैसे मजदूर आदमी को बहुत फर्क पड़ता है.. मुझसे गए बीते और भी लाखों करोड़ों हैं जिनकी आर्थिक स्थिति बदतर है.. हम तो आम इंसान हैं .. समीक्षा करना फ़र्ज़ है तो आलोचना करना भी अधिकार है… शायद सभी को लोकतंत्र में ऐसा ही होना चाहिए…किसी की दुम पकड़कर हांजी हांजी करना एक गैरतमंद इंसान को शोभा नहीं देता.. खुले विचार हैं.. अच्छा है तो अच्छा कहा. बुरा है तो बुरा कहा..
अमित टंडन… अजमेर

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