नहीं आसान सफ़र, कुछ दूर तुम भी साथ चलो
बड़ा मायूस शहर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो
जानता हूँ , नहीं हम साथ उम्र भर के लिए …
फिर भी चाहता हूँ मगर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो
वो वादियाँ,वो नज़ारे की हम मिले थे जहां
भुलाऊ कैसे मैं वो शोख नज़र , कुछ दूर तुम भी साथ चलो
थक चूका हूँ ,मैं ज़िन्दगी का साथ दे दे कर
जाने कब आये अलविदा का पहर , कुछ दूर तुम भी साथ चलो
इस वीरान भीड़ के बीच मैं बड़ा तनहा हूँ
खो गया भीड़ में हमसफ़र , कुछ दूर तुम भी साथ चलो
फेर कर मूहं , खड़ी है ज़िन्दगी मेरी तरफ
नहीं इस बेरुखी का मुझ पे असर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो
नहीं मरता ,कोई इक बार प्यार करने से
आओ आजमाए ये धीमा ज़हर ,कुछ दूर तुम भी साथ चलो ….
नरेश”मधुकर’
उम्दा ……