हमें किसी सर्र्टिफिकेट की जरूरत नहीं है….

sadiq-aliआज एक ‘सर्टिफिकेटधारीÓ देशभक्त से मुलाकात हुई। मैं यूनिवर्सिटी से रेलवे रोड के लिए निकला ही था, उसने मुझसे लिफ्ट मांग ली? कुछ दूर चला था कि मेरा मोबाइल बजा और मैंने बाइक रोकी। सामने एक दुकान दिखी, वहां से मैंने एक सिगरेट ली और बाइक के पास आकर जलाई। इसी दौरान उस ‘देशभक्तÓ ने मुझसे पूछा आप क्या हो? इस सवाल ने मुझे चौंकाया…, मैंने अपने दोनों हाथ कमर के नीचे लगाए.. पूंछ नहीं थी.., फिर सिर पर हाथ फेरा सिंग भी नहीं थे… शक्ल अजीब जरूर है पर इंसानों जैसी ही है..। फिर मैंने भाई के दोनों गालों को अपने दोनों हाथों में लेकर अंगूठे उसकी आंखों के नीचे रखे और आंखों के निचले हिस्से को खिंचा, उसकी आंखें भी ठीक थी। मेरी इस हरकत से वह थोड़ा गर्माया, बोला जो पूछा वह बताते क्यों नहीं, क्या पागलों जैसी हरकत कर रहे हो? मुझे लगा यह बंदा साइको है। लेकिन फिर भी मैंने जवाब दिया, कहा भाई, मेरे हिसाब से तो मैं इंसान ही हूं, तुम्हें क्या लगता है? वह बोला मजाक मत करो बताओ क्या हो? मैंने कहा भाई मैं पत्रकार हूं। बोला वह तो बाइक के पीछे प्रेस लिखा देखकर पता चल गया? लेकिन हो क्या, गौत्र क्या है? अरे मारा रे…. मैंने सिर पीट लिया और बोला पत्रकारों का गौत्र खबरें ही होती है भाई। तुम जानना क्या चाहते हो? फिर उसने कहा अरे किस जात के हो, किस धर्म के हो? मुझे हंसी आई कुछ और कहना चाहता था, लेकिन मैंने कहा मेरा नाम सादिक अली है…। उसने हैरानी से लगभग चीखते हुए कहा क्या है? मैंने फिर दोहरा दिया सादिक अली, हालांकि इस बार मैंने थोड़ी तेज रफ्तार में अपना नाम बताया। उसके चेहरे पर अजीब सी झुंझलाहट थी, उसने कहा नाम छोड़ों, धर्म बताओ…. इस बार मैं लगभग उछल ही गया…। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, भाई मैं मुसलमान हूं…। उसके चेहरे के रंग फिर बदले उसने अचानक ही मुझे गद्दार का सर्टिफिकेट थमा दिया….। बंदा यह भी भूल गया कि मैंने अभी अभी उसे लिफ्ट दी। उसने आव देखा न ताव मेरी पूरी कौम को सरहद पर हुए हमलों का जिम्मेदार भी घोषित कर दिया। मुझे गुस्सा भी आया और फिर हंसी भी। हंसी ये सोच कर आई कि जो शख्स मेरे नाम से मेरे महजब का पता नहीं लगा पाया, वह किसी धर्म की हकीकत को कितना समझता होगा? फिर भी मैंने उससे पूछ ही लिया भैया आपकी प्रिंटिंग प्रेस कहां है? वह बोला कौन सी प्रिंटिंग प्रेस? मैंने कहा वही जहां देशभक्तों और गद्दारों के लिए सर्टिफिकेट छापते हो? इतना सुनते ही वह मुझे छोड़कर सड़क के दूसरे किनारे की ओर चल दिया। शायद अपनी तरह किसी ‘देशभक्तÓ से लिफ्ट लेने…..। कमाल है ना, कैसे कैसे लोग.. मतलब देशभक्त है मेरे देश में…. । अब यदि आप भी कोई सर्टिफिकेट देना चाहे तो दे दो भाई लोग, हालांकि हमें किसी सर्र्टिफिकेट की जरूरत नहीं है…….।

सादिक अली

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