थे तो आतकी ही

ओम माथुर
ओम माथुर
वो आतंकवादी थे। वो सिम्मी के आतंकी थे। कल भोपाल जेल से भागे थे। पुलिस ने एन्काउंटर मे उन्हें मार गिराया। हर एनकाउंटर की तरह ये भी विवादों मे है। कई सवाल है जो शक पैदा करते हैं की ये असली एन्काउंटर था या फर्जी। सबसे ज्यादा सवाल दिग्विजय सिंह के दिमाग मे हैं। जो हर आतंकी की मौत के बाद वो उठाते हैं, कांग्रेस कभी उनके साथ नही होती। लेकिन उनके बयानों से खुद को दूर भीं नही करती। कांग्रेस का यही असमंजस उसे लोगों से दूर कर रहा है। मुद्दों पर खुलकर सामने या विरोध मे आने की हिम्मत वो नहीं कर पाती। आठों आतंकी जिस तरह भागे। जितनी जल्दी घेरे गए। जिस तरह मारे गए। जेल से भागने के बाद उनके हुलिए में जैसे बदलाव आया। सवाल उठना स्वाभाविक है। फिर क्यों नहीं कांग्रेस सीधा आरोप लगा सरकार को घेरती हैं? लेकिन सबसे जरूरी सवाल। आतंकियों की मौत पर अफसोस क्यों? जो बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतारते हो,उनसे क्यों हो सहानुभूति। आतँक का अंत तो आतंकियो की मौत से ही होगा। अगर आतंकियो के मानवाधिकारों की इतनी चिंता है तो निर्दोष लोगो और उनके परिवारों के भी तो मानवाधिकारो की चिंता भी तो करनी होगी। आतंक को कुचलने के लिए अब उनकी मौत पर सवाल उठना बंद होने चाहिए। भले ही मौत कैसे भी, कही भी,कभी भी हो। आतंकियों में भी मौत का डर बैठना चाहिए।

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