मूल: दीपक लालवानी
पहल करके मनाएगा कौन ?
कल वो खाई
ऐसी ख़ला भर पाएगा कौन ?
मैं भी चुप गर तुम भी चुप हो
परत चुप्पी की छेदेगा कौन?
मैं दुखी और तुम भी बिछड़कर,
दिल को दिलासा देगा कौन ?
ना मैं राज़ी, ना तुम राज़ी,
माफ़ी का मूल्य सिखाएगा कौन ?
तुझमें मुझमें अहम् भरा जो
शिकस्त आखिर दिलाएगा कौन?
मूंद ली दोनों ने जो आँखें
मातम कहो मनाएगा कौन ?
डूबेगा दिल दर्द में ‘दीपक’ मंद चराग़ जलायेगा कौन ?
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सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
सुभाण खाई
माँ बि चुप ऐं तूँ बि हुयें चुप
विछिड़ी
न तूं राज़ी
तोमें मूमें अहम् भरयल जो
पूरी अख जे तो मूं गडु गडु
बुडंदी दर्द में दिल जे ‘दीपक’
मंद चराग़ जलाईंन्दो केरु?
पता: ९-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५०