”प्रेम”

रश्मि जैन
रश्मि जैन
प्रेम.. कितना सुन्दर शब्द है
जिसे सुनते ही में दिल मे सुमधुर
स्वरलहरियां गूंजने लगती है
बगैर इसके ज़िन्दगी रंगहीन है
बंधन नही चाहिए प्रेम को
चाहिये आज़ादी..भरोसा
बंधन में प्रेम मरने लगता है
प्रेम अँधा होता है..
लेकिन मन की आँखे सब देखती है
प्रेमी की आँखों में विश्वाश ढूंढता है
प्रेम एक कोमल पौधे के समान है
विश्वाश रुपी खाद चाहिये
प्रेम को पल्लवित होने के लिए
वासना रहित प्रेम पूज्नीय है
एक की तकलीफ दूसरे को दर्द का अहसास कराती है
वो अपने प्रेमी की बाहरी नही
आंतरिक सुंदरता में डूब जाता है
स्वार्थ रहित प्रेम.. यही तो है शाश्वत प्रेम..रूहानी प्रेम..

रश्मि डी जैन
महासचिव,आगमन साहित्यक संस्थान
नई दिल्ली

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