बिना सांसो के जीना भी तो कमाल है।
इक ये लब है के कुछ बोलते ही नही,
कुछ राज जो दिल खोलते ही नही,
जल रही हूँ मैं लौ बिन शमा की तरह,
जैसे जिस्म हो,बिन आत्मा की तरह,
जान कर भी अभी भी तो अनजान हूँ,
कुछ कहना भी चाहूँ तो कैसे कहूँ?
आ भी जाओ के हालत से कंगाल हुँ,
अब जज्बात मेरे हैं रूठे हुये,
मेरे अपनों के सायें भी छूँटे हुये,
रोक लो अब मुझे ,थाम लो अब मुझे,
कहना पाऊँगी’ ,रहना अब बेहाल है,
अब ना पूँछ मेरा हाल क्या हाल है?
अब ना पूँछ मेरा हाल क्या हाल हैं?
– अनीता अजय हांडा
मुम्बई (महाराष्ट्र)