आदिवासियों के हकों की जारी रहेगी यह लड़ाई

बेला भाटिया
बेला भाटिया
-बाबूलाल नागा-
आदिवासियों हितों के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया पर छŸाीसगढ़ के बस्तर में किए गए हमले की कई सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी निंदा की है। यह पहली बार नहीं है जब बस्तर में मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा हुआ है। आज तक ऐसी अनेक घटनाएं सामने आई हैं।
बेला जगदलपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर परपा गांव में रहती हैं। बेला पिछले 30 सालों से लोगों के अधिकारों के लिए लगातार काम कर रही हैं। वे बस्तर इलाके में पुलिस-प्रशासन के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं। खासतौर से सुरक्षाबलों के रेप का शिकार होने वाली महिलाओं को वो मदद करती हैं। बीजापुर के दो गांवों में अक्टूबर, 2015 और जनवरी 2016 के बीच सुरक्षाबलों के जवानों ने जिन महिलाओं के रेप किया, हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम के साथ जाकर उन्होंने उन पीड़ित महिलाओं के बयान दर्ज कराए था। जिसके बाद आयोग ने 16 महिलाओं के साथ रेप की बात दर्ज की थी। बेला ने कई ऐसे मामलों का खुलासा किया है, जिसमें सुरक्षा-बलों के आदिवासी औरतों और बच्चियों के साथ रेप करने का मामला सामने आया। बेला इस दल का सहयोग कर रही थी तथा महिलाओं को अपने बयान निडर व स्वतंत्र ढंग से करने में मदद कर रही थी।
23 जनवरी की दोपहर उनके घर के पास बोलेरो व बाइक में आकर रुकी। करीब 30-32 लोगों के एक समूह ने बेला के घर को घेर लिया। घर के अंदर घुसकर उन्हें तत्काल अपना बोरिया बिस्तर बांधकर बस्तर छोड़ने को कहा। 24 घंटे के अंदर घर ना छोड़ने पर उन्हें इसका अंजाम भुगतने और उनके घर को जलाने की धमकी दी गई। बेला ने उनसे थोड़ा समय मांगा और मौका देख कलक्टर को फोन कर मामले की जानकारी दी। इसके थोड़े देर बाद ही यहां मौके पर पुलिस पहुंची लेकिन हुडदंगियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वह लगातार उनके विरोध में नारे लगाते रहे। इसके बाद बेला द्वारा गुजारिश करने पर वे मंगलवार को शाम 6 बजे के पहले मकान खाली करने की बात पर सहमत हुए। उसके बाद यह लोग चले गए। घटना के वक्त बेला घर पर अकेली थी। जान से मारने की धमकी और घेराव के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके घर पर 15 जवानों की तैनाती कर दी है। बेला भाटिया ने कहा कि लोग मुझे नक्सली कहते हैं लेकिन मैं नक्सली नहीं हूं। यहां तक लोगों ने मुझे सफेदफोश नक्सली का भी नाम दिया। बेला के घर पहले भी धमकी भरे पर्चे फेंके जा चुके हैं। उनका पुतला फूंका जा चुका है। बेला भाटिया पहली सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हैं जिन्हें बस्तर छोड़ने की धमकी मिली हो। इससे पहले मालिनी सुब्रमनियम और जगदलपुर के लीगल ऐड की शालिनी गेरा, इशा खंडेलवाल को इसी तरह से धमकाकर बस्तर से बाहर किया जा चुका है। इससे पहले सोनी सोढ़ी पर भी लगातार ऐसे हमलों का शिकार हो चुकी हैं। छŸाीसगढ़ पिछले कई सालों से माओवादी हिंसा का शिकार रहा है। यहां माओवादियों से निपटने की आड़ में सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लोगों के मानवाधिकार का हनन कर रहे हैं। हिंसा का डर दिखाकर प्रशासन की शह पर कुछ लोग मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं को छŸाीसगढ़ से बाहर भगाना चाहते हैं। पीयूसीएल के अनुसार बस्तर में पिछले एक साल में कई फर्जी मुठभेड़ों, फर्जी गिरफ्तारी, फर्जी सरेंडर और महिलाओं की उत्पीड़न की कहानियां सामने आई हैं। बेला पर हुआ यह कार्यरतापूर्ण हमला भी इसी कड़ी का हिस्सा है।
बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागा
बहरहाल, इस हमले ने बेला को झकझोर जरूर दिया है पर उनके बुलंद हौसलों में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने तय किया है कि बस्तर में आदिवासी हितों को लेकर जो काम वह कर रही हैं, करती रहेंगी। बस्तर में जो कोई आदिवासियों के हक की बात कहेगा उसे इसी तरह बस्तर से बाहर निकाल दिया जाएगा। वह इससे डरने वाली नहीं, आदिवासियों के हक की लड़ाई वे हमेशा लड़ती रहेंगी। यह मेरा अधिकार है, और इसे उनसे कोई छीन नहीं सकता। बेला गरीब आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए काम कर रही है। बस्तर छोड़ने का तो सवाल ही नहीं है।
(लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)

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