क्या हम अच्छे दिनों की ओर अग्रसर हैं?

babu lal naga 1-बाबूलाल नागा- नरेंद्र मोदी सरकार अपने एक साल के कार्यकाल के ऐतिहासिक जश्न में डूबी हुई है। ‘वर्ष एक, काम अनेक’ के विलक्षण नारे से वातावरण गुंजायमान है। सबका साथ सबका विकास के संकल्प के साथ नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी तो इस 26 मई को मोदी सरकार का एक साल पूरा हो गया है। इस एक वर्ष में देश को क्या मिला? और क्या नहीं मिला? इसका हिसाब-किताब सब अपने-अपने तरीकों से कर रहे हैं। पर देश तो अब तक भी अच्छे दिनों का इंतजार कर रहा है। उन्हीं अच्छे दिनों का जो एक वर्ष पहले नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को सपने के रूप में दिखाया था। अब स्वाभाविक है कि सरकार के एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर यह प्रश्न उठाया जाएगा कि क्या वाकई अच्छे दिन आ गए हैं? क्या हम अच्छे दिनों की ओर अग्रसर हैं?
वर्ष 2014 मेें ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ जैसा क्रांतिकारी नारा देकर नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति में इतिहास रच दिया था। यह नारा भारत देश में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। इसी नारे की फेर में पड़कर आम आदमी ने मोदी सरकार से जरूरत से अधिक उम्मीदें लगा रखी थी और अब चूंकि वे सभी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं इसीलिए आम आदमी में एक बैचेनी सी भी दिखाई दे रही है। आम आदमी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। उनके लिए अच्छे दिनों का नारा महज जुमला बन कर ही रह गया। हालांकि मोदी सरकार ने पिछले एक साल के भीतर कई योजनाओं को अमलीजामा पहनाया लेकिन सरकार आम जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में नाकामयाब ही रही। एक साल में बातें तो खूब र्हुइं, पर जमीनी हकीकत अब तक कोई खास नहीं बदली है। पूरे 365 दिन जनता के लिए एक दुःस्वप्न की तरह रहे हैं। देश के सारे संसाधन जमीन, जल, जंगल, कृषि सहित सारे क्षेत्रों को निर्बाध रूप से कॉरपोरेट को साैंपने की गारंटी की जा रही है। वहीं ऑर्डिनेंस के जरिए भूमि लूट और मेक-इन-इंडिया के नाम पर श्रम की लूट हो रही है। बालश्रम कानून में भी बदलाव कर देश की जवानी और बचपन को भी कॉरपोरेट के हवाल करने की व्यवस्था कर दी है। मोदी सरकार किसानों व गांवों से कट गई। पहले साल की सबसे बड़ी नाकामी किसानों की चिंताओं को दूर नहीं कर पाना है। किसान आत्महत्याओं का ग्राफ पहले के किसी भी दौर से ज्यादा तेजी से बढ़ा है। पहले ही बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, महिला सशक्तीकरण और विभिन्न सेवाओं में सबसे ज्यादा कटौती की गई है। पिछले एक साल में मोदी सरकार ने सामाजिक क्षेत्र के कल्याण के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं में पौने दो लाख करोड़ रुपए की कटौती की है। अनुसूचित जातियों के लिए विशेष घटक योजना व आदिवासी उपयोजना के लिए केंद्रीय बजट 20157-16 में पिछले बजट की तुलना में प्रावधान क्रमशः 42 हजार 208 करोड़ रुपए से घटाकर 30 हजार 851 करोड़ रुपए और 26 हजार 715 करोड़ रुपए से घटाकर 19 हजार 980 करोड़ रुपए कर दिए गए। केंद्र सरकार जहां एक और बच्चों से संवाद कर उन्हें बेहतर कल के सपने दिखा रही हैं वहीं दूसरी ओर उनके स्कूल बंद कर किस तरह के हकीकत से रू-ब-रू करा रही है। गौरतलब है कि पूरे देश में कम से कम 7 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे प्राथमिक शिक्षा से बेदखल हैं। राजस्थान प्रदेश में तो 17 हजार सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया। आज शिक्षा सहित सभी संस्थाओं का भगवाकरण हो रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को कंपनियों के हवाले कर दिया जा रहा है। यह सरकार गरीबों की तकलीफों को लेकर बेपरवाह है और उद्योगपतियों की अधिक परवाह करने वाली है। गरीबों से जुड़े मुद्दों की अनदेखी की है।
गनीमत है कि पिछले एक वर्ष में कोई बड़ा घपला फिलहाल उजागर नहीं हुआ है लेकिन लोकपाल का मामला अधर में ही लटका है। लोकपाल के लिए यूपीए सरकार के समय ही विधेयक पारित हो गया था, पर लोकपाल संस्था का गठन अब तक नहीं हो पाया है। इसी तरह विसब्लोअर कानून सालभर पहले बना था मगर उसकी अधिसूचना अब तक जारी नहीं हो पाई है। केंद्रीय सूचना आयोग के खाली पद भी नहीं भर पाए हैं। इस कारण 39 हजार आरटीआई मामले केंद्रीय सूचना आयोग के पास अनिर्णित पड़े हुए हैं।
बहरहाल, मोदी सरकार के एक वर्ष के राज ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिन आमजन के लिए और कठिन होने जा रहे हैं। जनता मोदी सरकार की नीतियों की लगातार मुखालफत कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पलक झपकते ही सुशासन, विकास, महंगाई कम करने, भ्रष्टाचार के खात्मे, काला धन वापस लाने, सबको साथ लेकर विकास करने, नौजवानों को रोजगार दिलाने जैसे भारी भरकम वादे किए थे। पर लगता है कि सारे वायदे ताक पे रख दिए गए हैं। आज भले ही मोदी सरकार ‘‘जनकल्याण पर्व’’ के नाम पर जश्न मना रही हो लेकिन इस जश्न में शामिल होने के लिए गरीब, मध्यवर्ग, किसान और अल्पसंख्यकों के पास कोई वजह नहीं है। (लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)

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