नोटबंदी के बाद प्रॉपर्टी के दाम क्यों नहीं गिरे !!*

ramesh tahliyaniनोटबंदी से आशा जगी कि प्रॉपर्टी की क़ीमती में गिरावट होगी। कुछ विशेषज्ञों और अखबारो ने कहा कि मार्च 2017 तक प्रॉपर्टी की क़ीमते 30% तक कम हो जाएँगी। ऐसा होना इसलिए माना जाता था क्योंकि प्रॉपर्टी के लेन-देन में ‘काले भाग’ के लिए कैश की ज़रूरत होती थी।
भारत में, अधिकतर प्रॉपर्टी के सौदों में लेन देन का बड़ा हिस्सा कैश में होता था। इन सौदों में ख़रीददार बेचने वाले को कैश में भुगतान करता था। ऐसा करने से ख़रीदने वाला स्टांप ड्यूटी और सर्विस टैक्स बचाता था और बेचने वाला कैपिटल गैन टैक्स।
ऐसा माना और सोचा गया था कि नोटबंदी के बाद कैश की कमी हो जाएगी और क़ीमतें गिर जाएँगी। ऐसा ही कई लोग कहते भी थे।
अब सवाल है कि क्या नोटबंदी के बाद प्रॉपर्टी की क़ीमतें कम हुई? सरकार को ऐसा ही लगता है कि क़ीमतें गिरी है तथा ये और भी गिरेंगी क्योंकि कैश की कमी के चलते लेन देन मुश्किल होगा और अघोषित आय को रियल इस्टेट में निवेश करना मुश्किल होगा।

ताज़ा आर्थिक सर्वेक्षण को देखेंगे तो पता चलेगा कि नोटबंदी के बाद पिछले तीन माह में रियल इस्टेट बाज़ार में काफ़ी धीमापन आ गया है। नए लॉंच और बिक्री के आँकड़े काफ़ी नीचे आएँ है। इन आँकड़ो के अनुसार दिसम्बर 2015 की तुलना में दिसम्बर 2016 में नए घरों व प्रोजेक्ट की लॉंचिंग 60% तक और बिक्री 40% तक गिरी है। ये सब नोटबंदी के कारण नहीं हुआ, क्योंकि यह तो नोटबंदी से पहले भी हो रहा था। इन आँकड़ो को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि नए लॉंच और बिक्री में गिरावट के बावजूद भी प्रॉपर्टी की क़ीमतों में आशा अनुरूप कुछ खास गिरावट नहीं आई। सच यही है कि सोच के अनुरूप प्रॉपर्टी के दाम नहीं गिरे।

बिक्री कम होने के बावजूद क़ीमतों का ना गिरना बताता है कि रियल इस्टेट मार्केट को समझना काफ़ी जटिल है। बिक्री में 40% की गिरावट के बाद क़ीमतों के ना गिरने की ठोस वजह और विश्लेषण और जवाब दे पाना काफ़ी मुश्किल और जटिल है, किंतु सम्भावित कारण बताए जा सकते है।

एक सम्भावित कारण है कि कई भारतीय रियल इस्टेट कंपनियो के पीछे कई राजनीतिज्ञों की काली सम्पत्ति है। इन बिल्डरो द्वारा इन राजनीतिज्ञों को निश्चित मुनाफ़ा देने का वादा होता है, इसलिए वे दाम नहीं घटा पाते।

दूसरा कारण हो सकता है कि पिछले कुछ सालों में बिल्डरो और राजनीतिज्ञों ने काफ़ी धन कमाया है और इसलिए उनको अब दाम कम करके बेचने की कोई जल्दी भी नहीं है।

तीसरा सम्भावित कारण है कि जिन बैंको ने बिल्डरो को लोन दिए है, वे बैंक नहीं चाहते की क़ीमतें कम हो।

एक चौथा कारण, जो कि किसी ने मुझे बताया है कि प्रॉपर्टी की बिक्री गिरी ज़रूर है पर उतनी नहीं जितनी आशा थी। इसका क्या मतलब? इसका मतलब है कि नोटबंदी के बाद कई बिल्डरो ने अपनी ‘inventory’ उनको बेची, जिनके पास 500 और 1000 के पुराने नोटो के रूप में काला धन था।
बिल्डरो ने इस धन से अपने ‘सप्लायर’ की उधारी चुकाई। सप्लायरो ने इस धन को अपनी उधारी चुकाने में इस्तेमाल किया। इस उधार चुकाने की लम्बी शृंखला के अंत में पुराने नोट कामगारों तक पहुँचे और उन्होंने ये धन ( पुराने नोट) बैंक में जमा करवाए और इस तरह काले धन का रंग बदल गया।

आख़री कारण जो मुझे लगता है वह यह कि भारतीय रियल इस्टेट निवेशको की holding क्षमता काफ़ी अच्छी है। नुक़सान में बेचने की बजाय वे प्रॉपर्टी को रखना पसंद करते है।

मैं जानता हूँ कि प्रॉपर्टी की क़ीमतें ना गिरने की और भी वजहें होंगी, पर ये वजह मेरे सामने आयी और मैंने आपके सामने रखी। रियल इस्टेट बाज़ार में इतना समय गुज़ारने के बाद मेरे विचार है कि इस बाज़ार का विश्लेषण करना बहुत ही मुश्किल है।

*रमेश टेहलानी, CEO : सुख-सम्पत्ति*

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