हटाने की ज़रूरत है ।
लगी जो आग बस्ती में,
बुझाने की जरूरत है ।
दिवाली, ईद या होली ,
जहाँ तक़रार बनती है ।
फ़क़त हठ की दीवारों को,
ढहाने की जरूरत है ।
वतन को गालियाँ देकर,
जो गाए गीत औरों के ।
सबक़ , ऐसे अधर्मी को ,
सिखाने की जरूरत है ।
सशंकित हर गली-आँगन ,
अँधेरा ही अँधेरा है ।
वहाँ विश्वास का दीपक ,
जलाने की ज़रूरत है ।
– नटवर पारीक,डीडवाना