दूसरी सबसे बड़ी बात जो न तो समझ में आती है और न ही स्वीकार करने योग्य है । बस का बहादुर ड्राइवर हमला होने के बाद बस को दो किलोमीटर तक भगाता रह न तो आतंकवादियों ने ड्राइवर पर गोली चलाई न ही बस को रोकने कइ का कोई प्रयास किया यानि आतंक वादी नौसीखिये थे उन्हें याद ही नहीं आया होगा की बस के टायर पर गोली मारकर भी बस को रोक जा सकता है ?
अब तीसरी बात और भी बहुत सुन्दर है , घटना जम्मू एंड कश्मीर में हुई स्वाभाविक ही है की जांच भी वहां की पुलिस या फिर नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी करेगी लेकिन बहुत ही जल्दी सभी घायलों और बचे हुए लोगों को एक स्पेसल हवाई जहाज में भर कर गुजरात के अहमदाबाद शहर लेजाकर छोड़ा गया और देश भक्त राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष ने घोषित भी कर दिया की यह हमला गुजरातियों पर किया गया है , शायद शवों पर राजनीती करने का यह प्रयोग हमे 2002 के गोधरा कांड की याद को ताजा करने को प्रेरित कर सके जहा 59 कर सेवकों को जो अयोध्या उत्तर प्रदेश सें ट्रेन में सवार होकर गुजरात लौट रहे थे वो भी चुनाव का ही समय था और उस कांड को चुनाव में खूब जमकर भुनाया गया था , हमे भी कोई आश्चर्य नहीं होगा जब श्रद्धालुओं पर हुयी गोली बारी को चुनाव में भुनाया जायेगा ? इस लिए इस काण्ड की गहराई सेंजांच की जानी चाहिए ? जो संभव ही नहीं है ?
एस० पी० सिंह, मेरठ