पेरावणी और बिदाई

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
बड़ी दीदी के यहाँ शादी थी। उसने शादी की पत्रिका मै स्पष्ट उल्लेख किया था कि– कृपया पेरावणी न लावें । इसके बाद भी छोटी दोनो बहने पेरावणी की थैलियां लेकर पहुंची। दोनों बहनों ने काफी ना नकुर के बाद भी अपनी थैलियां दीदी की गोद मै रख ही दी । विवाह सकुशल सम्पन्न हो गया। बड़ी दीदी ने दोनों को एक -एक थैली बिदाई के रुप मै दी और कहा –कि मेरी ओर से साड़ी पहन ले। दोनों बहनों ने अपने अपने कमरों मै जाकर तुरंत साड़ी पहन ली। बाहर निकलने पर दोनों ही बहने एक दूसरे को देखकर आश्चर्य करने लगी । अचानक दोनों के मुह से निकला –ये साड़ी तो मैने दीदी को दी थी । यह सच भी था ।पेरावणी न लेने का निश्चय करने वाली बडी दीदी ने बिदाई न देने का भी निश्चय किया था। इस लिए बिदाई के लिए कोई उपहार भी नहीं खरीदा था। बहनो का उपहार भी नहीं रखना चाहती थी सो होशियार बड़ी दीदी ने दोनो ही बहनों से प्राप्त साड़ियां आपस मै बदलकर दोनो बहनों को बिदाई मै दे दी। ऐसी पेरावणी व बिदाई प्रथा का क्या महत्व है और हम कब ऐसी पेरावणी व बिदाई की कुप्रथाओ को बिदाई देंगे ?

हेमंत उपाध्याय । व्यंग्यकार व लघुकथाकार ।9424949839 9425086246 7999749125 gangour knw.gmail.com

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