एक सवाल की रोशनी में कश्मीर की समस्या देखी जाए। अगर कश्मीर मतांतरित न हुआ होता, हिंदू या बौद्ध ही बना रहता तो क्या आज कश्मीर समस्या होती? हां, कश्मीर में समस्याएं तो होतीं, रोजगार और गरीबी की, अशिक्षा की और विकास की, जैसे कि बाकी भारत में है, लेकिन कोई कश्मीर-समस्या न होती।
राजनीति जब ईश्वर-अल्लाह के नाम पर चलने लगती है तो जाहिर है वह हमें आज की समस्याओं का समाधान नहीं देती। क्या धर्म ने पाकिस्तान की समस्याओं का समाधान कर दिया है? नहीं, क्योंकि धर्म तो जिंदगी के बाद का रास्ता बनाता है। हमने शोपियां में दो महिलाओं की हत्याओं की प्रतिक्रिया देखी है, जैसे संपूर्ण घाटी में उबाल आ गया हो। वहीं जब दहशतगर्र्दो द्वारा शीराजा की हत्या की गई तो सन्नाटा छा जाता है। अमरनाथ यात्रा की भूमि पर घाटी में हुए आदोलन को भी देखा है। अगर धर्म का फर्क न होता तो क्या ये प्रतिक्रियाएं होतीं?
माउंटबेटन उत्तरी कश्मीर के स्ट्रेटेजिक महत्व से वाकिफ थे। उन्होंने सेनाओं को जानबूझकर उड़ी से डोमेल, मुजफ्फराबाद की ओर नहीं बढ़ने दिया। वह चाहते थे कि गिलगिट बालतिस्तान का क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में रहे, जिससे आगे चलकर सीटो, सेंटो संगठन द्वारा उसका उपयोग सैन्य अड्डों के लिए किया जा सके।
कश्मीर मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के प्रस्ताव में उनकी मुख्य भूमिका थी।
शेख अब्दुल्ला जनमत संग्रह के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जनमत संग्रह के प्रस्ताव ने कश्मीर को एक ऐसी ओपेन एंडेड स्कीम का रूप दे दिया जिसमें कभी भी कोई भी निवेश कर सकता है।
शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में चुनावों के बाद पहली विधानसभा में ही भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकृत कराया जिससे जनमत संग्रह का झगड़ा ही खत्म हो जाए।
हिंदू मुसलमान का विवाद खत्म करने के लिए उन्होंने कश्मीरियत की बात की।
इसलिए कश्मीर समस्या के लिए शेख अब्दुल्ला को दोष देना गलत है। भारत के राजनीतिक दलों ने शेख के सामने जो धर्मसंकट था उसे समझने की कोई कोशिश नहीं की।
कश्मीर की इन नकली समस्याओं के कारण जो असल समस्याएं शिक्षा, रोजगार और विकास की हैं, पीछे रह गई हैं। इस जाहिलियत के माहौल ने उन्हें राष्ट्रीय नागरिक नहीं बनने दिया। हम सशक्त देश हैं, पर कमजोरों की तरह व्यवहार करते हैं। गठबंधनों से आ रही सत्ताएं हमारी कमजोरी का मूल स्त्रोत बन गई हैं। घटक दलों के सामने दुम हिलाना और फिर उसी सास में चीन को चेतावनी देना कहां संभव है?
आखिर कश्मीर समस्या क्या है?
क्या जो समस्या कश्मीर की है वही जम्मू की भी है?
क्या लद्दाख भी वही सोचता है जो घाटी के हुर्रियत नेता चाहते हैं?
जो बात जम्मू के लिए कोई समस्या नहीं वह कश्मीर घाटी के चालीस लाख लोगों के लिए समस्या क्यों है?
यह मूलत: एक मनोवैज्ञानिक समस्या है ‘हिंदू भारत’ के साथ रहने की। वे हमारे 15 करोड़ मुसलमानों से अपने को अलग समझते हैं। कश्मीर घाटी के लोगों को अलगाववादी मानसिकता के हवाले कर दिया गया है। यह मनोविज्ञान जनमत संग्रह के अनायास स्वीकार से पैदा हुआ है। इतिहास में कहीं भी और कभी भी वोट देकर राष्ट्रीयताओं पर निर्णय नहीं हुआ।
मनोवैज्ञानिक समस्याओं का इलाज आपरेशन नहीं होता। सशक्त राष्ट्र की तरह व्यवहार करना हमें अपने से बहुत छोटे देशों वियतनाम, इजरायल, ईरान यहां तक कि पाकिस्तान से भी सीखना है। युद्ध अवश्यंभावी है तो युद्ध होगा, लेकिन उसकी आशकाओं से कमजोरों की तरह व्यवहार करना हमें समाधान की ओर नहीं ले जाता।
कश्मीर: पुलिस अधिकारी पर भड़की भीड़, पीट-पीटकर ले ली जान
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