कुछ कड़वी , कुछ मीठी बातें ,
फिर क्यों ये त्योहार सुहाते ?
आती है हर वर्ष दिवाली ,
कर देती है जेबें खाली ।
ईद बहुत खर्चीली होती ,
फिर भी सबके मन का मोती ।
निर्धन कर्ज़दार बन जाते ,
फिर क्यों ये त्योहार सुहाते ?
होली मस्ती भरा पर्व है ,
बोलो किसको नहीं गर्व है ?
मनभावन कितना यह प्यारा ,
पर कुछ ने स्वरूप बिगाड़ा ।
कभी – कभी झगड़े हो जाते ,
फिर क्यों ये त्योहार सुहाते ?
कुछ तो है इन त्योहारों में ,
तभी सुहाते ये आए हैं ।
क्रिसमस,ओणम, बैसाखी भी,
सदा -सदा हमको भाए हैं ।
देशप्रेम का पाठ पढ़ाते ,
इसीलिए त्योहार सुहाते ।
– नटवर पारीक , डीडवाना
9414548148