तू देख तमासा मेरा भी

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
संसद में बैंकों के एन. पी. ऐ. पर प्रधानमंत्री के भाषण से लगता है कि इस व्यक्ति की करनी और कथनी में कितना फर्क है यह वयक्ति अपनी कथनी के शब्दों में मानवीय मूल्यों की ईमानदारी की चिकट से चिकना दिखाने में प्रयासरत रहता है जबकि इसकी करनी मूल रूप से केवल राजनीतिक और द्वेषता से लबरेज दिखाई देती है ।
क्योकि जब भी इसके अपने कार्यकाल में किसी भी प्रकार की अनिमितता सामने आई उसका सुधार करने के बजाय उसका ठीकरा किसी अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी पर फोड़ देने की आदत है इनको इस विधा में महारथ भी हासिल है और किसी को हँसी उड़ाने में भी यह सिद्धहस्त है ।
परन्तु इनकी यह कलाऐं राष्ट्रहित में कतई उपयोगी नही हो सकती तो किसी ने कहा इसको यह छोड़ क्यो नही देते ? क्योकि इनको भृम है कि इन ही विधाओं के माध्यम से मैं विश्वगुरु का ताज पहन पाऊँगा ।
वरना तो सरकार चाहती तो माल्या के भागने के बाद ही ऐसे लोगो को चिंहित करके इस प्रकार के अपराध को रोक सकती थी और अगर नेतृत्व यदि ऐसा नही करता है तो हम ऐसे नेतृत्व को ईमानदार कैसे कह सकते है ?
जब एक ही प्रकार का जुर्म गली गली में होने लगे तो लोग कोतवाल को भी शक की नजर से देखने लगते है और कहीं कहीं यह आवाज भी उठने लगती है कि यह कोतवाल भी साला चोर है ।
ऐसी आवाज को दबाने के लिए भक्त एक साथ चिल्लाते है कि हमारे कोतवाल के कौन सी बीवी है कौन से बच्चे है किसके लिए धन संचय करेगा ।
अरे भाई अंधभक्तों आपके कोतवाल के अपनी छवि चमकाने का रोग लगा हुआ है और इस छवि चमकाने के हर नुक़्शे को आजमाने में यह दीवाना परहेज नही करेगा चाहे वह नोटबन्दी का नुक़्शे , हो चाहे जी एस टी का नुक़्शे हो और मोदी मोदी नारे लगाने में चाहे नीरव बाबू क्यो ना हो सब को घोल कर पी जायेगा फिर कोई भी विपक्षी इसकी बात पर अंगुली उठाएगा तो उनपर अपने ब्रह्मास्त्र भुंड का ठीकरा फोड़ू कला और हँसी में उड़ानी की कला से यह कोतवाल हर बार अपने को बचाने में सफल रहा है ।
मगर अब देखते है आगे क्या होता है ?

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