जोबनेर की अनिता कुमावत का कृषि वैज्ञानिक पद पर चयन, देशभर में चैथी रैंक
ऽ बाबूलाल नागा ऽ
कहा जाता है कि लगन और हिम्मत से किसी भी मुकाम को पाया जा सकता है। यह कहावत अनिता की इस सफलता पर सटीक बैठती है। क्योंकि शादी के बाद गृहस्थी में फंसने के बाद महिला के लिए पढ़ाई करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इतने बड़े मुकाम को हासिल करना वाकई लाजवाब है। हाल में अनिता कुमावत का चयन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) नई दिल्ली में कृषि अनुसंधान वैज्ञानिक पद पर हुआ है। अनिता ने देशभर में चैथी रैंक हासिल कर न केवल अपनी मां के सपने को पूरा किया है बल्कि अपने परिवार व समाज का भी नाम रोशन किया है। आज उनकी इस सफलता पर हर कोई गद्गद हो रहा है। समाज की ओर से पूरे गांव में उनकी इस सफलता पर विजयी जुलूस निकाला गया। कालाडेरा कस्बा अपनी बेटी पर तो जोबनेरवासी अपनी बहू पर गर्व कर रहे हैं।
अनिता का मायका जयपुर जिले के कालाडेरा कस्बे में है। वह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है। परिवार में मां और चार बहिनें और एक छोटा भाई है। पिता के असामायिक निधन के बाद मां विमला देवी के कंधों पर परिवार का गुजारा चलाने और अपनी बेटियों की शादी और पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी आन पड़ी। विपरित परिस्थितियों में भी मां ने हौसला नहीं खोया और अपनी पांचों बेटियों और बेटे को पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने की चुनौती को स्वीकार किया। वैसे तो विमला देवी के पांच बेटियां हैं पर उन्होंने सपना देखा कि उनकी दूसरे नंबर की बेटी अनिता एक दिन किसी ऊंचे ओहदे पर पहुंचकर उनका नाम रोशन करें। अनिता अपनी मां के द्वारा देखे गए इस सपने की अहमियत को समझती थी। अनिता कहती है,‘‘ मेरी मां ने हम सब बहिनों की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने दूसरों के खेतों में जाकर फसल कटाई का काम किया और हमें पढ़ाया लिखाया। मैं जब दिल्ली में रहकर अपनी परीक्षा की तैयारी करती थी तो मन ही मन सोचती थी कि मेरी मां अभी गांव में चिलचिलाती धूप में किसी के खेत में काम कर रही होगी। मां ही यही ताकत मुझे हौसला देती थी।‘‘
हिम्मत से बनाया मुकामः इसके पीछे की कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं कि मां ने सपना देखा और बेटी जुट गई। दिल्ली में रहते हुए अनिता ने कड़ी मेहनत की। दिल्ली में हाॅस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई व तैयारी की। रात को 2-3 बजे तक पढ़ाई करती थी। तैयारी के बीच अनिता ने अपने घर की जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। दरअसल जुलाई 2014 में जोबनेर में उनकी शादी हुई। शादी उस वक्त कर दी गई जब वह बीएससी की छात्रा थी लेकिन वह कहती है कि ससुराल पक्ष के लोगों और पति ने उसे पूरा सहयोग दिया। उसकी पढ़ाई जारी रही। इस दौरान उन्होंने वर्ष 2014 में अपनी बीएससी पूरा करने के साथ ही 2016 में एमएससी की पढ़ाई भी पूरी कर ली। अनिता का ससुराल जोबनेर में है। यहां भी उन्हें अपने पति ओकश व ससुर व जेठ-जेठानियों की मदद मिली। ससुरालवालों को अनिता की काबलियत पर भरोसा था। शादी के बाद भी उसकी पढ़ाई को जारी रखा। दिल्ली भेजकर आगे की पढ़ाई करवाई। मायके में अनिता ने अपने पिता को तो ससुराल में अपनी सास को खो दिया था। ससुराल में ससुर पिता बनकर तो जेठानियां सास की भूमिका में अनिता के साथ खड़ी रही। उसके हौसले को बनाये रखा। उनकी हिम्मत को कभी तोड़ा नहीं बल्कि बढ़ा दिया, जिससे वह यह मुकाम पा सकी। आज अनिता की इस उपलब्धि पर परिवार वालों का खुशी का ठिकाना नहीं है। परिवारजन मिठाई बांटकर अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं। इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए पूरा जोबनेर कस्बा उत्साहित है। प्रदेश का कुमावत समाज अपनी इस बेटी-बहू की उपलब्धि पर अनिता का सम्मान कर रहा है।
अनिता ने जेट परीक्षा में 7वीं रैंक हासिल की जबकि जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) में 8वीं रैंक के साथ उनका चयन हुआ। उन्होंने शस्य विज्ञान (एग्रोनाॅमी) से एमएससी किया। अनिता का चयन वर्ष 2012 में कृषि पर्यवेक्षक पद पर हो गया था पर उनकी काबलियत के आगे यह पद उनके लिए बोना था। उनको तो ऊंची उड़ान भरनी थी। उन्होंने इस पद पर पोस्ंिटग लेने की बजाय अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखना मुनासिब समझा। वर्तमान में वह पीएचडी भी कर रही है।
काबलियत पर था भरोसाः अनिता कहती है,‘‘ हां मुझे अपनी काबलियत पर भरोसा तो था पर यह नहीं सोचा था कि एक दिन यूं मुकाम पर पहुंच पाऊंगी। मां का आशीर्वाद मेरे साथ था। जिस दिन परिणाम आया और देशभर में चैथी रैंक हासिल की तो मैंने सबसे पहले अपनी मां को फोन कर यह बात बताई। वह उस दिन काफी खुश हुई। खुशी के मारे उस दिन खाना भी नहीं खाया। कहा मेरी बेटी ने यह सफलता हासिल कर मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
बेटियां भी कम नहींः अनिता मानती है कि बेटियों के लिए सभी काम एक जैसे है। किसी भी काम को करते समय यह नहीं सोचना चाहिए कि यह हम नहीं कर सकते। मेरा साधारण परिवार था लेकिन परिवार से मिले हौसले की बदौलत वो कर दिखाया जो आज समाज में हर बेटी को करना चाहिए। उन्होंने लड़कियों को संदेश देते हुए कहा कि कभी हिम्मत मत हारो। अपनी मां विमला देवी के सपने को पूरा कर इस बेटी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कड़ी मेहनत ही सफलता की एकमात्र कुंजी है। इस बेटी ने आखिर कृषि अनुसंधान वैज्ञानिक बनकर मां के सपने को पूरा कर दिया। अनिता ने इस मुकाम पर पहुंचकर पता बता दिया कि बेटे ही नहीं बेटियां भी उन सपनों को पूरा करती हैं।
महिला कृषकों की बढ़े भागेदारीः अनिता कृषि अनुसंधान वैज्ञानिक बन गई हैं। अब वह देश के किसानों व खेती को नई दिशा देने में महत्पूर्ण भूमिका निभाएंगी। किसानों विशेषकर महिला कृषकों की मदद करना ही उनका मुख्य लक्ष्य रहेगा। भारत में कृषि के विकास एवं कृषि को कैसे सुनियोजित ढंग से किया जा सकता है। इस पर काम करेंगी। अनिता कहती है कि कृषि में अहम योगदान देने के बावजूद महिला श्रमिकों की कृषि संसाधनों और इस क्षेत्र में मौजूद असीम संभावनाओं में भागीदरी काफी कम है। इस भागीदरी को बढ़ाकर ही महिलाओं को कृषि से होने वाले मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है।
(लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं) (संपर्क- 335, महावीर नगर, सेकंड, महारानी फार्म, दुर्गापुरा, जयपुर- 302018 मोबाइल-9829165513)