भैय्या जी इसी को तो लोकतंत्र कहते है जब सरकार अपना कर्तव्य भूल जाती है तो जनता उठ खडी होती है जो काम सरकार को करना चाहिए था वो जनता ने किया और वो अधनांगे जो हर कही चुनाव जितने के लिए गाय और सूअर का मांस तक खा ज़ाते है कहीं दिखाई नहीं दिये . वैसे भी माहाराष्ट्र के किसानो को क्या मिला केवल कोरा आश्वासन फडनवीस को एक सप्ताह लग गया निर्णय लेने मे इसलिए अगर सरकार पहले से जागरुक होती तो लाचार किसानो को 180 किलोमीटर पैदल चलकर अपने पैरो को लहुलुहान न करना पडता , सरकारी के ठुल्ले हिसाब लगा रहे है कि वामपंथियो ने आन्दोलन कर रहे किसानो के खाने पीने का प्रबन्ध कैसे किया , शायद मासिक प्रवचन मे प्रत्येक माह हलक मे उगंली डालकर मन के विकार को उगलने वाला अपना प्रधान सेवक कुछ सार्थक बात बता सके कि किसानो कि मागं का औचित्य सरकार की नजर मे क्या और कितना है ?
S.P.Singh,Meerut