बिन पानी सब सून

कल्पित हरित
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून |
अगर चौथा विश्वयुद्ध होगा तो वो पानी को लेकर होगा |
तो पानी को लेकर कभी कबीर दास जी ने सोचा तो कभी आधुनिक दौर मे आइंस्टीन जी ने भी चेताया और अपनी चिंताए जाहीर की | अगर पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की ही कमी होती है तो कई सामस्याए स्वत: ही उत्पन्न हो जाएंगी जिनमे सम्पन्न वर्ग धन के आधार पर अपने हितो को साधेगा , असमानता बढ़ेगी और संघर्ष की स्थिति सीधे टकराव तक पहुँच सकती है | शायद इसी की कल्पना करते हुए आइंस्टीन जी ने चौथे विश्वयुद्ध की कल्पना की थी |
जल संरक्षण को लेकर कोई नीति होनी चाहिए , जल के अपव्य को रोकने के लिए नियम कानून होने चाहिए क्योकि जल अगर प्राक्रतिक संसाधन है तो सभी का उसपर बराबर का हक है और अपव्य की इजाजत किसी को दी नहीं जा सकती | अलबत्ता घरो मे बोरिंग लगा कर पानी के अंधाधुंध उपयोग , तथा अपव्यय आपको कई श्हरों मे कई जगह देखने को मिल जाएँगे पर इन पर रोक कैसे लगे इसका जवाब खोजे नहीं मिले क्योंकि जल के अपव्यय रोकने को लेकर कोई सोच हमने विकसित की ही नहीं शायद इसके पीछे एक कारण ये भी हो सकता है कि पानी मुफ्त का है , जो मुफ्त का है उसकी कोई कीमत हम समझते नहीं है या उसके अपव्यय से हमे कोई फर्क पड़ेगा नहीं , इस तरह कि सोच कि ओर हम बढ़ चले है |
भारत एक विकासशील देश है और चकाचौंध तथा आधुनिकता वो विकास का पैमाना माना जाता है और ये वर्तमान की जरूरत भी है | फिर भी मूलभूत आवश्यकताओ और प्रक्रति को दरकिनार करके ऐसा नहीं किया जा सकता , विकास के नाम पर कंकरीट के जंगल खड़े कर दिये जाये ओर उसी अनुपात मे पेड़ लगाने कि ज़िम्मेदारी किसी की न हो , जमीन से पानी का अंधाधुंध दोहन हो जाये और जल संरक्षण के लिए उसकी कोई ज़िम्मेदारी तय न हो तो हम क्या माने कि विकास की चकाचोंध सभ्यता के अंत की ओर ले जा रही है ?
Central GROUND WATER REPORT 2013 बताती है कि 411 (bcm = billion cubic meter ) ग्राउंड वॉटर की उपलब्धता पूरे देश मे है| जिसका मुख्य स्त्रोत मानसून मे होने वाली वर्षा है , लगभग 58% जल धरती मे वर्षा से आता है |
देश के कुल 4% कुएं अपना जल स्तर 4 मीटर बढ़ा पाये है तो 35% का स्तर 4 मीटर से कम बढ़ा है तथा 64% के जल स्तर मे गिरावट आई है औसत जल स्तर भी घाटा है | इसके बावजूद हर साल 251 cubic kilometer जल धरती से निकाला जाता है जो कि देश के सबसे बड़े भाखडा बांध की क्षमता से 26 गुना ज्यादा है |
UN education scientific and cultural orgnisation की 2010 की रिपोर्ट ये कहती है कि ग्राउंड वॉटर का उपयोग करने मे भारत एक नंबर पर है तथा चाइना से 124% अधिक जमीनी जल का उपयोग भारत करता है |
देश मे जमीनी जल का स्तर घट रहा है पर बोतल बंद पानी का कारोबार 4000 करोड़ के पार कर चुका है |
जब आंकड़े ये कहानी बनया करते है तो तीन प्रश्न उभर के जहन मे आते है कि 1- जब जमीनी जल का उपयोग इतनी excess मे हो रहा है तो इस अनुपात मे इसे बढ़ाने के क्या उपाय किए जा रहे है ?
2- जो लोग जमीनी जल का उपयोग कर रहे है उनके द्वारा आवश्यक रूप से जल संरक्षण के उपाय किए जाये इसे लेकर कोई नियम या कानून नहीं होना चाहिए ?
3- अनावश्यक रूप से जमीनी जल का उपयोग करने से रोकने के लिए कोई कानून है जिसका पालन सख्ती से किया जाए ?
जल संरक्षण आज आवश्यकता ओर महत्व का प्रश्न है जिसके लिए सरकारी पर्यतन जरूरी है ताकि इस विषय को के प्रति नीति बनाई जा सके और अनुपालना उचित तरह से हो जिसमे सामूहिक सहयोग द्वारा लक्ष्यो की पूर्ति की जाये| मानसून का मौसम आने ही वाला है जिस प्रकार पूर्व मे सरकार द्वारा कई कार्यो को सामाजिक सरोकार से जोड़ा गया उसी प्रकार इस विषय को भी जोड़ा जाना चाहिए |
अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो वह वक़्त दूर नहीं जब :-
“सब पानी पानी होगा , बस पानी नहीं होगा”

कल्पित हरित

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