नीम के तेल में तले करेले के पकौड़े परोस दिए !

मोहन थानवी
अहा… क्या स्वाद है! चटखारे ले-लेकर खाते जाओ… खाते ही जाओ । और हम लोग खाते भी रहे। बाद में हमें पता चला कि हम तो करेले के पकोड़े चाशनी में भिगोए और नीम के तेल में तले हुए खा रहे हैं। ऐसी चर्चाएं शहर शहर गली-गली पान की दुकानों, चौक में यार दोस्तों के बीच चल रही है । राजनीतिक जगत में गरीबी हटाएंगे, भ्रष्टाचार मिटाएंगे, विकास करवाएंगे, शिक्षा मुफ्त दिलाएंगे, रोजगार उपलब्ध करवाएंगे आदि ब्लॉकबस्टर नारे और वादे संकलित करके देखें तो चाशनी में भीगे करेले के पकोड़े सामने आ ही जाएंगे । इन दिनों राजस्थान विधानसभा चुनावों में जुमला उछला है वह है किसानों का ऋण माफ करने और बेरोजगारों को भत्ता देने का। अवाम इस जुमले पर चिंतित है कि इसका असर आम आदमी से लिए गए टैक्स से भरे सरकारी खजाने पर क्या और कितना पड़ेगा! इस चिंता को लेकर इधर भलेशक आम मानुष रिरियाता रहे कि- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो। अपनी अढ़ाई दिन की बादशाहत के लिए अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग अलापे जा रहे हो । याद रखना काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है । उसकी इस चिंता कि फिक्र भला नेताजी ने आज तक की है जो अब करेंगे! आम आदमी बखूबी जानता और समझता है – आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए । पब्लिक सब जानती है । लेकिन पब्लिक के जानने से अआज तक नेताजी पर क्या फर्क पड़ा है जो अब पड़ेगा? क्योंकि जनता यह भी तो जानती है कि अधजल गगरी छलकत जाए। ऐसी चिंताओं से घिरे हम लोग अभी इन पकौड़ों का स्वाद ले ही रहे थे कि राजनीतिक दलों के कुछ होशियार प्रतिनिधियों ने ढोल की पोल पोल भी खोल दी। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। ऐसे नीम के तेल में तले के पकोड़े तले के पकोड़े के पकोड़े चाशनी में भिगो कर परोस दिए जाने का खुलासा हुआ टीवी चैनल पर गरमागर्म बहस के दौरान । नेताजी ने जब यह कहा कि सभी किसान ऋण में डूबे नहीं होते। और जो ऋणी हैं वे सभी डिफाल्टर नहीं होते । इसका मतलब जो डिफाल्टर की श्रेणी के किसान हैं उनको इन घोषणाओं लाभ मिलेगा। और यह भी कि सभी डिफाल्टर भी ऋण ऋण माफी की श्रेणी में नहीं आएंगे। उसमें भी बैंकों की श्रेणी और डिफाल्टर होने की गिनती व अवधि देखी जाएगी। तब जाकर कुछ किसानों को ऋण माफी के लिए चयनित किया जाएगा । ऐसा ही सिलसिला बेरोजगारों को भत्ता देने के हेतु चलेगा। फिर किसे घोषणाओं का लाभ मिल सकेगा, यह तय करने पर मशक्कत होगी और तब तक अगला चुनावी मौसम आ जाएगा। यानी वही होगा जो मंजूर-ए-नेताजी होगा! तो क्या जैसे गरीबी न हटी, देश में काला धन वापस न आया, आरक्षण, मंदिर, भ्रष्टाचार के भूत न भगाए जा सके वैसे ही किसानों के ऋण और युवाओं की बेरोजगारी की पीड़ा बनी रहेगी ? ऊंट किस करवट बैठेगा? बैठ भी सकेगा या खड़े का खड़ा ही रह जाएगा? यह तो वक्त ही बताएगा। नीम के तेल में तले हुए और चाशनी में भीगे करेले के पकौड़े खाते हुए देखेंगे हम लोग।
-✍️ मोहन थानवी

error: Content is protected !!