राजस्थानः बाल विवाह को बालिका वधू की ‘किक‘

सदियों पुराने बाल विवाह का अत्याचार देश के तकरीबन हर हिस्से में कभी रिवाज, कभी परम्परा तो कभी मजबूरी के नाम पर आज भी जारी है. ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ‘ के बड़े-बड़े दावे तो 21वीं सदी के आधुनिक भारत में किए जा रहे हैं लेकिन सच ये है कि बेटियों को बचाना कानून के लिए भी बड़ी चुनौती है. बाल विवाह को लेकर सरकार भले ही सख्त हो लेकिन आज भी यह कुप्रथा चोरी छिपे बदस्तूर जारी है.
अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गईएक रिपोर्ट में दावा किया गया कि बाल विवाह का शिकार हुई सबसे ज्यादा लड़कियां पश्चिम बंगाल में हैं. इसके तहत पश्चिम बंगाल के शहरी इलाकों में 40.7 और ग्रामीण इलाकों में 47 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं. दूसरे नंबर पर बिहार रहा जहां बाल विवाह के 39 प्रतिशत मामले समाने आए.
तीसरे नंबर पर झारखंड में बाल विवाह के 38 प्रतिशत मामले सामने आए. चैथे नंबर पर राजस्थान रहा जहां बाल विवाह के 35.4 प्रतिशत मामले सामने आए. पांचवे पर महाराष्ट्र रहा जहां 25 प्रतिशत मामले सामने आए.
लेकिन अब राजस्थान में इस कुप्रथा के खिलाफ बेटियों ने ही झंड़ा बुलंद कर दिया है. न्यूज़18 इंडिया की एक खास रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के अजमेर में बचपन में ही शादी की बेड़ियों में जकड़ दी गई लड़कियों ने अपनी आजादी के लिए खेल को सहारा बनाया है.
धार्मिक मान्यताओं के लिए माने जाने वाले अजमेर में दशकों से जारी कुप्रथा पर आज तक लगाम नहीं लग पाई है. यहां आज भी बड़े पैमाने पर बाल विवाह को अंजाम दिया जाता है. आज भी यहां दो साल से 6 साल की उम्र के बच्चों की शादी कर दी जाती है. न तो कानून का खौफ है और न ही किसी की परवाह.
हैरानी इस बात की भी है कि अगर कोई परिवार इस कुप्रथा का हिस्सा न बनना चाहे, तो समाज की बंदिशें बच्चियों को बर्बादी की बेड़ियों में जकड़ने को मजबूर कर देती हैं. अपनी आजादी के लिए लड़ रही ये लड़कियां रोजाना पहले स्कूल जाती हैं फिर मैदान में फुटबॉल की प्रैक्टिस करती हैं. सगाई और शादी के बन्धन में बंधी इन लड़कियों ने हिम्मत दिखाई और आत्मविश्वास के दम पर ससुराल जाने के इनकार कर दिया.
अजमेर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर हशियावास गांव में बाल विवाह के खिलाफ कई बच्चियां एक जुट हो गई हैं. कम उम्र में इन बच्चियों की शादी कर दी गई थी, उस वक्त न तो ये शादी का मतलब जानती थीं और न ही आज भी इन्हें इसकी कुछ समझ है, लेकिन अपनी आजादी और सपनों के मायने ये बच्चियों खेल और किताब के जरिए समझ गई हैं. इन लड़कियों में किसी की सगाई हो गई तो किसी की शादी. ये बच्चियां भी पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती हैं
इन लड़कियों ने अब एक फुटबॉल ग्रुप बनाया है. इसमें कई ऐसी बच्चियां हैं जो अपनी बड़ी बहनों की शादी के समय ही बाल विवाह का शिकार हो गई थीं लेकिन अब उन्होंने कसम खाई है कि वो गांव में दूसरी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद नहीं होने देगीं. पिछले दो सालों से फुटबॉल खेलती ये बच्चियां आज इतने आत्मविश्वास से भर चुकी है कि बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ खुलकर परिवार वालों के सामने आवाज उठाती हैं.
इन बच्चियों का भी सपना है कि वो फुटबॉल में मेसी और रोनाल्डो जैसी खिलाड़ी बनें. बच्चियों ने शपथ ली है कि वे गांव में होने वाले बाल विवाह में शामिल नहीं होंगी. बच्चियों को ट्रेनिंग दे रही ट्रेनर आरती शर्मा ने बताया कि जब वो पहुंची तो बच्चियों की हालत बेहद खराब थी. उन्होंने कहा कि बच्चियों को यहां तक लाने में काफी मुश्किलें आईं.
इन बच्चियों में ये आत्मविश्वास महिला जन कल्याण समिति नाम के एक एनजीओ की कोशिश से आया है. इस एनजीओ ने इन बच्चियों को दो साल की मेहनत से खड़ा किया है. एनजीओ में काम करने वाली महिला करुणा फिलिप बताती हैं कि खुद में आत्मविश्वास और हिम्मत लाने में खेल से अच्छा माध्यम कोई नहीं था लेकिन लड़कियों को फुटबॉल खिलाना इतना आसान नहीं था. दो साल पहले शुरु किए गए इस सफर में अब 150 से ज्यादा बच्चियां इस फुटबॉल कल्ब का हिस्सा हैं.

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