यह क्रिकेट या नूरा कुश्ती

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
खेल तब रोचक होता है जब दोनों प्रतिद्वन्दी टीमें बराबर की हो यह मेंने पहले भी 2014 के बाद अपनी ऐक पोस्ट में बताया था कि इस बार विपक्ष के हार के कारण यह है कि इनके पास ना मोदीजी जैसा तेज फेकने वाला बोलर था ना फिल्डर था ना उनके पास अमितशाह जैसा बेटसमैन था यहां तक की विकीटकिपर गलप्स भी फटे हुऐ थे उसके बाउजूद 2019 में भी इस राजनीतिक क्रिकेट में विपक्षी टीम में उतना सुधार नही हुआ हाँ कुछ सुधार था मगर जीतने जैसा पर्याप्त सुधार नही था और परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विपक्ष मुँह के बल गिरा और मुँह पर इतनी चोटे आई की खिलाड़ियों के चहरे भी आज दिन तक पहचान में नहीं आ रहे है यह सब इस लिए हुआ की बिना नेटप्रेक्टिस , बिना फिटनस , बिना टीम भावना के यह लोग मैदान में उतर क्यों गए ?
अब आप बताओं पुरे चुनाव के दौरान यह विपक्ष अपने आप को राष्ट्रवादी ही साबित नही कर पाया और ना ही अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से जनता के गले उतार सका तो बताओं क्या मुकबला करोगे ?
मालूम है मोदीजी के कल संसदीय दल का नेता बनने के बाद के अपने भाषण में उनकी नजर 2024 के चुनाव के ऊपर टिकी हुई थी उनके भाषण का एक एक शब्द बाण चुनाव के निशाने पर था मतलब वर्ष के 365 दिन आपको चुनावी मोड में ही बना रहना पड़ेगा यदि इनका मुकाबला करना चाहते हो तो आज हमारे विपक्ष को यह भी ज्ञान नही की मोदीजी की चौकड़ी पिछले अपने सम्पूर्ण कार्य काल में चुनावी मोड़ में ही बनी हुई थी यह और इनकी आईटी सेल और चुनिंदा स्टाफ नियमित रूप से राजनीति से जुड़े रहते आप लोगो की तरह यह लोग पार्ट टाईम राजनीति नही करते इसको इन लोगो ने पुस्तैनी व्यवसाय की तरह अपना रखा है और यह लोग राजनीति की शिक्षा में उस पुरानी चाणक्य निति के भरोसे नही है इन्होंने शोध व परिवर्तन करके नए वर्जन का निर्माण भी किया है जिसमे ऐनकेन प्रकारेण सफलता के नए ऐप का भी इस्तेमाल जोर सोर से हो रहा है आपको इसे भी पढ़ना पड़ेगा ।
अब यदि आप मुकाबले को महत्व देते हो और राजनीति को ईमानदारी से करना चाहते हो तो पहले आपको मोदीजी को गहराई से पढ़ना पड़ेगा जानकर लोगो की सहायता से इनके बेटिंग और बोलिंग के रिप्ले देखने पड़ेगें हर चीज का तोड़ निकलना पड़ेगा और अपने को इनसे 20 नही 21खिलाडी बनना पड़ेगा वरना योगेन्द्र यादव ने सही कहा है की ऐसे विपक्ष को खत्म हो जाना चाहिए ।
यह यादव ने इस सन्दर्भ में कहा था कि घटिया विपक्ष से तो शून्यता ज्यादा लाभकारी है क्योकि शून्यता नए नेतृत्व को निमन्त्रित करती है और नए परिवर्तन के प्रारूप को जनमानस नई आशा के रूप में समर्थन भी देता है ।
यह विपक्ष को तय करना है की अब क्या करना है अपने बोरिया बिस्तर समेटना है या पुनः जीवत होना है तो कमर कसकर बांधनी पड़ेगी नितिनिर्धारण हेतु किसी बुद्धिमान तड़ीपार की भी व्यवस्था भी करनी पड़ेगी वरना परिणाम इस से भी बुरे आने वाले है ।
महेंद्र सिंह भेरुन्दा

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