इस पर चिंतन और शोध करें

नटवर विद्यार्थी
कितना अच्छा हो
हम अपना अधिकांश समय
कक्षा- कक्ष में बिताएं
मासूम बच्चों से
दिनभर बतियाएं
उन्हें
पढ़ना- लिखना सिखाएं ।
एक पिता
बड़ा विश्वास करके
सौंपता है हमें
अपनी संतान को
और कहता है
इसे ज्ञान दो ।
हमें सौंपकर वह
निश्चिंत हो जाता है
भविष्य के सपनों में
खो जाता है ।
एक पिता के
इसी विश्वास ने ही तो हमें
शिक्षक बनाया है
पर क्या हमनें
अपना धर्म निभाया है ?
हम हर बालक को
बनाएं समर्थ
यही तो है
पाठशाला का अर्थ ।
आओ , आज हम
अपने दायित्व का बोध करें
हम कितने खरे हैं
इस पर चिंतन और शोध करें ।

– नटवर पारीक

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