खूब बिछाओ काँटे चाहे ,
हमें रौंदना आता है ।
दलदल कितना भी फैलाओ,
पैर जमाना आता है ।
शक्ति के हम महापुंज है ,
अंगारों से खेले ना ।
दिन में तारे दिखला देंगे ,
हमें युध्द में ठेले ना ।
सागर पर पत्थर रख-रखकर ,
हमने मार्ग बनाया है ।
एक अँगुली पर पर्वत को ,
हमने यहाँ उठाया है ।
राम-कृष्ण के वंशज हैं हम,
कोई नए – नवेले ना ।
दिन में तारे दिखला देंगे ,
हमें युध्द में ठेले ना ।
शिवशंकर बनकर विष-प्याला,
हमको पीना आता है ।
भले विषम से विषम स्थिति,
हमको जीना आता है ।
छींटे देकर पिघला दोगे ,
वो मिट्टी के ढेले ना ।
दिन में तारे दिखला देंगे,
हमें युध्द में ठेले ना ।
-नटवर पारीक
श्री शारदा ज्ञानपीठ, डीडवाना
9414548148