दिक़्क़त यह है कि मन चंचल होता होता है और यह चंचलता हमें मार्ग से भटका देती है । होना यह चाहिए कि हम मन- प्राण से दाता पर विश्वास करें । सब कुछ उस पर छोड़ दें । हमारा काम कर्म करना है , फ़ल देना उसका काम । वह कभी हमारा अहित नहीं होने देगा । आख़िर पिता है वो । एक पिता अपनी संतानों को कभी निराश नहीं करता । उसका दिल बहुत बड़ा है और वक़्त आने पर एकदम सही और सटीक फ़ैसला करता है । शर्त यही है कि हमारी सोच निर्पक्ष हो , हमारी मांग तर्कसंगत हो और हमारे भाव सबके लिए सुखकारी हो । फिर देखो उसका कमाल !
-नटवर पारीक