भीड़ जुट भी जाती है और जुटा भी ली जाती है । स्वतः जुटी हुई भीड़ सकारात्मक भाव लिए हुए और जुटाई हुई भीड़ नकारात्मक भाव लिए हुए होती है । स्वतः जुटी हुई भीड़ शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने का प्रयास करती है और जुटाई गई भीड़ हिंसक रूप लेते देर नहीं करती क्योंकि उस भीड़ को तथाकथित आकाओं का समर्थन होता है जिनका उद्देश्य अपने सिर्फ़ अपने स्वार्थ की पूर्ति करना होता है ।
आज देश मे जो कुछ भी हो रहा है वह इन्हीं आकाओं की गंदी सोच का परिणाम है । अरबों- खरबों रुपयों की निजी तथा सरकारी सम्पतियाँ स्वाहा हो रही है , धन के साथ- साथ जन हानि की भी दुःखद घटनाएँ सामने आ रही है ।
भीड़ जुटाकर अपनी बात रखना अथवा विरोध प्रकट करना लोकतंत्र का एक हिस्सा है । हर व्यक्ति को अपनी आवाज बुलन्द करने का अधिकार है किंतु सभ्य समाज में जन – धन को क्षति पहुँचाने का हक़ किसी को भी नहीं दिया जा सकता । ऐसे असामाजिक तत्वों की सख़्ती से पहचान की जाकर उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए और सारी क्षतिपूर्ति उनके सिर पर मढ़ देनी चाहिए ।
एक बात और है । भविष्य के लिए चोर के साथ- साथ चोर की मौसियों पर भी नज़र रखी जाए । ये मौसियाँ ही तो भीड़ को अपनी कुचालों का ग्रास बनाकर अपना उल्लू सीधा करती है ।किसी ने सच कहा है –
मेरे देश में जब भी दंगे हुए ,
कुछ लोग और भी चंगे हुए ।
– नटवर पारीक