मनुहार की शुरुआत पेय से ही होती है । मनुहार अनादिकाल से चली आ रही है । कुछ पेय ग्रहण कर लोग चहक उठते हैं तो कुछ को ग्रहण कर बहक उठते हैं । हर पेय के अपने – अपने रंग है । ज़रूरत है उन रंगों को पहचानने की अन्यथा बदरंग होते भी देर नहीं लगती ।
एक बात और है , मिलावट के इस दौर में अब पेय भी सुरक्षित नहीं है । हाँ , किसी अमीर को तो पीकर मरते हुए नहीं देखा किन्तु ग़रीब को इसका शिकार होते हुए जरूर देखा और सुना है । उपदेश देना तो बाबाओं का काम है । मैं तो बस इतना ही जानता हूँ –
माना कि अपनी- अपनी मज़बूरी है ,
पर ज़हर पीना भी क्या जरूरी है ?
– नटवर पारीक