आज की दुनिया तो पूरी तरह अभिनय पर टिकी है । हर कोई डुप्लीकेट नज़र आ रहा है । चेहरे बदलने में लोग इतने माहिर हो गए है कि सच और झूठ में अंतर करना मुश्किल हो गया है । ख़री बात कड़वी होती है पर किसी ने क्या खूब कहा है –
ये अलग बात है कि बाहर से बना है जोगी ,
आज के दौर में हर शख्स रावण की तरह है ।
आज के तथाकथित बाबाओं ने तो अभिनय की हद ही कर दी । संतोष की बात है कि अब वे सलाखों के पीछे है । राजनीति भी तो अभिनय का ही खेल है । वादों का जाल फेंककर मछलियों ( जनता ) को फंसाने का अभिनय ही तो कर रहे हैं ये सब ।किसी शायर ने कितना सटीक कहा है –
हैं सियासत के मछेरे , जाल फैलाए हुए ।
हम सब है मछलियाँ , जाए तो कहाँ जाए ?
– नटवर पारीक