*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
महात्मा विदुर ने एक प्रसंग में कहा है – बुढ़ापा रूप को , आशा धैर्य को , मृत्यु प्राण को , क्रोध श्री को , काम लज्जा को और अभिमान सर्वस्व हरण कर लेता है । अभिमान यानि जो हूँ वो मैं ही हूँ , सामने वाला मेरे सामने कुछ भी नहीं है । अभिमानी स्वयं को बड़ा और दूसरे को कमतर आँकता है , वह उद्वेग , दर्प और क्रोध से भरा रहता है । अपने को ऊँचा उठाकर दूसरों को नीचे गिराना और स्वयं को श्रेष्ठ समझना अभिमानी होने का प्रमाण है । अभिमानी वही काम करते हैं जहाँ उनको प्रमुखता मिलती है ।अभिमान अंततः पतन का कारण बनता है । अभिमानी व्यक्तियों के पतन की कहानियों से इतिहास भरा है ।
अभिमान से बिल्कुल विपरीत स्वाभिमान शब्द लघुता से प्रभुता की और बढ़ने का भाव है । किसी को चोट पहुँचाए बिना अपना सम्मान और गरिमा बनाए रखना स्वाभिमान है । स्वाभिभान ” मैं ही हूँ ” के स्थान पर ” मैं भी हूँ ” का भाव लिए होता है । स्वाभिमान विनम्रता , समानता , सहकार , शांति , निष्ठा , आत्मविश्वास , कर्मठता एवं कर्त्तव्य परायणता से पोषित होता है । स्वाभिमानी हमेशा स्नेह और आदर का पात्र बनता है । स्वाभिमान व्यक्ति को विशेष और सफल बनाता है , उसे पहचान देता है । स्वाभिमानी व्यक्ति किसी की दासता अथवा व्यर्थ का उपकार स्वीकार नहीं करता । महाराणा प्रताप स्वाभिमान के श्रेष्ठ प्रतीकों में से एक है । किसी ने सच कहा है –
इंसान के अंदर जो छलके ,
वो स्वाभिमान है ।
और जो बाहर छलके ,
वो अभिमान है ।

– नटवर पारीक

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