रवीदासजी ने अपने एक ब्राहमण मित्र की रक्षा एक भूखे शेर से की थी जिसके बाद दोनों मित्र बन गये। शहर के दूसरे ब्राहमण इस दोस्ती से जलते थे सो उन्होंने इस बात की शिकायत राजा से कर दी। रविदास जी के उस ब्राहमण मित्र को राजा ने अपने दरबार में बुलाया और भूखे शेर द्वारा मार डालने का हुक्म दिया। शेर जल्दी से उस ब्राहमण लड़के को मारने के लिये आया लेकिन गुरु रविदास को उस लड़के को बचाने के लिये खड़े देख शेर शांत हो गया और वापिस लोट गया | रविदास जी के चमत्कार से राजा और ब्राह्मण लोग बेहद शर्मिंदा हुये और वो सभी गुरु रविदास के अनुयायी बन गये।
एक आदमी गुरु रविदास जी के पास एक पत्थर ले कर आये और कि यह बोले यह पत्थर किसी भी लोहे को सोने में बदल सकता सकता है। जब उस आदमी ने पत्थर को सुरक्षित जगह रखने के लिये गुरुजी पर दबाव डाला और कहा कि मैं इसे लौटते वक्त वापस ले लूँगा तब रविदास ने उसे अपने घर के छप्पर पर फेकं दिया | गुरु जी ने उसकी ये बात वो दर्शनशास्त्री कई वर्षों बाद लौटा तो पाया कि वो पत्थर उसी तरह छप्पर पर पड़ा हुवा है | गुरुजी के गुरु रविदास ने हमेशा अपने अनुयायीयों को सिखाया कि कभी धन के लिये लालची मत बनो, धन कभी स्थायी नहीं होता, इसके बजाय आजीविका के लिये कड़ी मेहनत करो।
संकलनकर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—- डा. जे. के. गर्ग, Visit our blog —-gargjugalvinod.blogspot.in