आज का कवि

बी एल सामरा “नीलम “
भूल गया है ,अपना कर्तव्य !भटक गया है दूर , बहुत दूर- गुमनाम अंधेरी राहों पर ,
पहले कवि की लेखनी ढोती थी,बोझ , केवल भावना का और सृजन की कामना का । आज आज कवि की लेखनी
ढोती है बोझ रोजी का ,
केवल रोटी का ।
आज का कवि हो चुका दूर,
यथार्थ से बहुत दूर ।
उसकी कलम आज ढोती है बोझ सिर्फ रोटी का ।
अपनी रोजी रोटी की खातिर आज का कवि अपने कर्तव्य से विमुख हो गया और दौलत के चंद टुकड़ो के बदले ,अपनी अंतरात्मा से बगावत करता है ।
अपनी ही लेखनी से-
आज का कवि अपनी आत्महत्या करता है ।

*बीएल सामरा ” नीलम*”
पूर्व संपादक , मगरे की आवाज एवं प्रबंध संपादक, कल्पतरु हिंदी साप्ताहिक

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